उनकी हयात उसकी नमाजों के वास्ते,
मेरी हयात उसके के ही राजों के वास्ते।
मुर्शिद के बांकपन के तकाजों को देखिए,
नूरानियत है जिस्म गुदाज़ों के वास्ते।
मंजिल को अपनी, अपने ही पैरों से तय करो,
है हर किसी का कांधा जनाजों के वास्ते।
सासें तेरे वजूद की नगमो की नजर हों,
जुंबिश बदन की हों तो हों साजों के वास्ते।
गाने लगी है गीत वोह नाज़िल नुज़ूल की,
बुलबुल है आसमान के बाज़ों के वास्ते।
"मुंकिर" वहां पे छूते छुवाते हैं पैर को,
बज़्मे अजीब दो ही तक़ाज़ों के वास्ते।
मुर्शिद=आध्यात्मिक गुरु *जिस्म गुदजों =हसीनाओं *नाज़िल नुज़ूल =ईश वानियाँ
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