Friday, January 13, 2012

ग़ज़ल - - - आबला पाई है दूरी है बहुत


 
 
आबला पाई है दूरी है बहुत,
है मुहिम दिल की ज़रूरी है बहुत.
 
 
कुन कहा तूने हुवा दन से वजूद,
दुन्या ये तेरी अधूरी है बहुत।
 
 
रहनुमा अपनी सुजाअत में निखर,
निस्फ़ मर्दों की हुजूरी है बहुत।
 
 
देवताओं की पनाहें बेहतर,
वह खुदा नारी ओ नूरी है बहुत।
 
 
तेरे इन ताज़ा हिजाबों की क़सम,
तेरा यह जलवा शुऊरी है बहुत।
 
 
इम्तेहान तुम हो नतीजा है वजूद,
तुम को हल करना ज़रूरी है बहुत।
 
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1 comment:

  1. बहुत बढ़िया!
    मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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