Wednesday, January 25, 2012

ग़ज़ल - - - सुब्ह उफुक़ है शाम शिफ़क़ है



सुब्ह उफुक़ है शाम शिफ़क़ है,
देख ले उसको एक झलक है.


बात में तेरी सच की औसत,
दाल में जैसे यार नमक है।


आए कहाँ से हो तुम ज़ाहिद?
आंखें फटी हैं चेहरा फ़क है।


उसकी राम कहानी जैसी,
बे पर की
ये सैर ए फ़लक है।


माल ग़नीमत ज़ाहिद खाए,
उसकी जन्नत एक नरक है।


काविश काविश, हासिल हासिल,
दो पाटों में
जान बहक़ है।


धर्मों का पंडाल है झूमा,
भक्ति की दुन्या मादक है।


हिंद है पाकिस्तान नहीं है,
बोल बहादर जो भी हक है।


कुफ्र ओ ईमान टेढी गलियां,
सच्चाई की सीध सड़क है।


फितरी बातें एन सहीह हैं,
माफौकुल फ़ितरत पर शक है।


कितनी उबाऊ हक की बातें,
"मुंकिर" उफ़! ये किस की झक है.

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उफुक़=प्रातः क्षितिज लालिमा *शिफ़क़=शाम की क्षितिज लालिमा *काविश=जतन *फितरी=लौकिक *माफौकुल=अलौकिक
ग़ज़ल - - - दो चार ही बहुत हैं गर सच्चे रफीक़ हैं

3 comments:

  1. bahut umda ghazal.sabhi sher ek se badhkar ek hainn.कुफ्र ओ ईमान टेढी गलियां,
    सच्चाई की सीध सड़क है।
    yeh sher bahut pasand aaua.

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  2. बहुत सुन्दर!
    63वें गणतन्त्रदिवस की शुभकामनाएँ!

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