Wednesday, January 4, 2012

ग़ज़ल - - - बुल हवस को मौत तक हिर्स ओ हवा ले जाएगी


 
बुल हवस को मौत तक हिर्स ओ हवा ले जाएगी,
जश्न तक हमको किनाअत की अदा ले जाएगी।
 
बद खबर अख़बार का पूरा सफह ले जाएगा,
नेक खबरी को बलाए हाशिया ले जाएगी।
 
बाँट दूँगा बुख्ल अपने खुद गरज़ रिश्तों को मैं,
बाद इसके जो बचेगा दिल रुबा ले जाएगी।
 
रंज ओ गम, दर्द ओ अलम, सोज़ ओ खलिस हुज़्न ओ मलाल,
"ज़िन्दगी हम से जो रूठेगी तो क्या ले जाएगी"।
 
मेरा हिस्सा ना मुरादी का मेरे सर पे रखो,
अपना हिस्सा ऐश का वह बे वफा ले जाएगी।
 
गैरत "मुंकिर" को मत काँधा लगा पुरसाने हाल,
क़ब्र तक ढो के उसे उसकी अना ले जाएगी।

ज़ुल्म से सिरजी ये दौलत दस गुना ले जाएगी,
लूट कर फानी ने रक्खा है फ़ना ले जाएगी।
 
है तआक़ुब में ये दुन्या मेरे नव ईजाद के,
मैं उठाऊंगा क़दम तो नक्शे पा ले जाएगी।
 
तिफ्ल के मानिंद अगर घुटने के बल चलते रहे,
ये जवानी वक़्त की आँधी उड़ा ले जाएगी।
 
बा हुनर ने चाँद तारों पर बनाई है पनाह,
मुन्तज़िर वह हैं उन्हें उन की दुआ ले जाएगी।
 
सारे खिलक़त का अमानत दार है "मुंकिर" का खू,
ए तमअ तुझ पर नज़र है कुछ चुरा ले जाएगी।
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*बद रवी =दूर व्योहार *तआक़ुब=पीछा करना *तिफ्ल=बच्चा *तमअ=लालच

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