ज़मीं पे माना है खाना ख़राब का पहलू,
मगर है अर्श पे रौशन शराब का पहलू ।
ज़रा सा गौर से देखो मेरी बगावत को,
छिपा हुआ है किसी इंक़लाब का पहलू।
नज़र झुकाने की मोहलत तो देदे आईना,
सवाल दाबे हुए है जवाब का पहलू।
पड़ी गिजा ही बहुत थी मेरी बक़ा के लिए,
बहुत अहेम है मगर मुझ पे आब का पहलू।
खता ज़रा सी है लेकिन सज़ा है फ़ौलादी,
लिहाज़ में हो खुदाया शबाब का पहलू।
खुली जो आँख तो देखा निदा में हुज्जत थी,
सदाए गैब में पाया हुबाब का पहलू।
तुम्हारे माजी में मुखिया था कोई गारों में,
अभी भी थामे हो उसके निसाब का पहलू।
बड़ी ही ज्यादती की है तेरी खुदाई ने,
तुझे भी काश हो लाजिम हिसाब का पहलू।
ज़बान खोल न पाएँगे आबले दिल के,
बहुत ही गहरा दबा है इताब का पहलू।
सबक लिए है वोह बोसीदा दरस गाहों के ,
जहाने नव को सिखाए सवाब का पहलू।
तुम्हारे घर में फटे बम तो तुम को याद आया,
अमान ओ अम्न पर लिक्खे किताब का पहलू।
उधम मचाए हैं "मुंकिर" वोह दीन ओ मज़हब का,
जुनूँ को चाहिए अब सद्दे बाब का पहलू..
sashaqt ,lajabaab ghazal.
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