Friday, October 7, 2011

ग़ज़ल - - - जितना बड़ा है क़द तेरा उतना अजीम है


जितना बड़ा है क़द तेरा उतना अजीम है,
ऐ पेड़! तू भी राम है तू भी रहीम है.
 
ईमान दार लोगों के ज़ानों पे रख के सर,
बे खटके सो रहे हो ये अक़्ले सलीम है.
 
तेरह दिलों की धड़कनें, तेरह दलों का बल,
जम्हूर का मरज़ ये वबाल ए हकीम है.
 
अलकाब में आदाब के अम्बार मत लगा,
बालाए ताक कर इसे, क़द्रे क़दीम है.
 
खून का लिखा हुवा मेरा दिल में उतार लो,
ये आसमानी कुन, न अलिफ़,लाम, मीम है.
 
"मुंकिर"खिला रहा है जो कडुई सी गोलियां,
इंकार की दवा है, ये तासीर नीम है.
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1 comment:

  1. तेरह दिलों की धड़कनें, तेरह दलों का बल,
    जम्हूर का मरज़ ये वबाल ए हकीम है.

    क्या गहरी बात कही...
    बहुत उम्दा गज़ल..
    सादर...

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