Friday, July 1, 2016

Junbishen 809

ग़ज़ल

है कैसी कशमकश ये, कैसा या वुस्वुसा है,
यकसूई चाहता है, दो पाट में फँसा है।

दिल जोई तेरी की थी, बस यूँ ही वह हँसा है,
दिलबर समझ के जिस को, तू छूने में लसा है।

बकता है आसमा को, तक तक के मेरी सूरत,
पागल ने मेरा बातिन, किस ज़ोर से कसा है।

सच बोलने के खातिर, दो आँख ही बहुत थीं,
अलफ़ाज़ चुभ रहे हैं, आवाज़ ने डंसा है।

कैसी है सीना कूबी? भूले नहीं हो अब तक,
बहरों का फ़ासला था, सदियों का हादसा है।

है वादियों में बस्ती, आबादी साहिलों पर,
देखो जुनून ए 'मुंकिर' गिर्दाब में बसा है.

*****
*बातिन=अंतरात्मा *सीना कूबी=मातम *बहरों=समन्दरों *गिर्दाब=भंवर

غزل 

ہے کیسی کشمکش یہ ، یہ کیسا وسوسہ ہے 
یکسوئی چاہتا ہے ، دو پاٹوں میں پھنسا ہے ٠ 

دل جوئی تیری کی تھی ، بس یوں ہی وہ ہنسا 
دلبر سمجھ کے جسکو ، تو چھونے میں لسا ہے ٠ 

تکتا ہے آسمان کو، تک تک کے میری صورت 
پاگل نے میرا باطن ، کس زور سے کسا ہے ٠ 

سچ بولنے کی خاطر، دو آنکھین ہی بہت تھیں 
الفاظ چبھ رہے ہیں ، آواز نے ڈنسا ہے ٠ 

کیسی ہے سینہ کوبی ، بھولے نہیں ہو اب تک ؟
صدیوں کا حادثہ ہے ، بحروں کا فاصلہ ہے ٠ 

ہے وادیوں میں بستی ، آبادی ساحلوں پر 
دیکھو جنون منکر ، گرداب میں بسا ہے ٠ 

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