क़तआत
ढांचों के ढेंचू
दो सोलहवीं सदी के बहादुर थके हुए,
रक्तों की प्यास, खून की लज़्ज़त चखे हुए,
फ़िर से हुए हैं दस्तो-गरीबां यह सींगदार,
इतिहास की ग़लाज़तें सर पर रखे हुए।
शायरी
फ़िक्र से ख़ारिज अगर है शायरी , बे रूह है ,
फ़न से है आरास्ता , माना मगर मकरूह है,
हम्द नातें मरसिया , लाफ़िकरी हैं, फिक्रें नहीं ,
फ़िक्र ए नव की बारयाबी , शायरी की रूह है .
शोधन
मेरे सच का विरोध करते हैं ,
ईश वाणी पे शोध करते हैं ,
फिर वह लाते हैं भाग्य का शोधन ,
नासतिक पर क्रोध करते हैं
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