Tuesday, August 11, 2015

Junbishen 673


रुबाइयाँ


क्यों तूने बनाया इन्हें बोदा यारब!
ज़ेहनों को छुए इनका अकीदा1 यारब,
पूजे जो कोई मूरत, काफ़िर ये कहें,
खुद क़बरी सनम2 पर करें सजदा यारब.


नन्हीं सी मेरी जान से जलते क्यों हो,
यारो मेरी पहचान से जलते क्यों हो,
तुम खुद ही किसी भेड़ की गुम शुदगी हो, 
मुंकिर को मिली शान से जलते क्यों हो.


आज़माइशें हुईं, क़रीना आया,
चैलेंज हुए क़ुबूल, जीना आया.
शम्स ओ क़मर की हुई पैमाइश, 
लफ्फ़ाज़ के दांतों पसीना आया


मुमकिन है कि माज़ी में ख़िरद गोठिल हो, 
समझाने ,समझने में बड़ी मुश्किल हो, 
कैसा है ज़ेहन अब जो समझ लेता है, 
मज़मून में मफ़हूम अगर मुह्मिल हो. 


ये ईश की बानी, ये निदा की बातें, 
आकाश से उतरी हुई ये सलवातें , 
इन्सां में जो नफ़रत की दराडें डालें, 
पाबन्दी लगे ज़प्त हों इनकी घातें. 

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