Friday, August 8, 2014

Junbishen 223



मुस्कुराहटें 
सलोनी ग़ज़ल 
(मादरी ज़बान में)

आंधी पानी आवत है , चिड़िया ढोल बजावत है .
बदरी छपरा छावत है , सूरज आँख चुरावत है .
मछरी ताल मां नाचत है , मेढक सुर मां गावत है .
पागल मेघा गर्जत है , मस्त बयरया धावत है .
गोरी तन का सीचत है, छोरा नयन सुखावत है .

जी मां कितनी रहत है, बरषा रूप रिझावत है .
दूर खड़ी भरमावत है , दुविधा मोर बगावत है .
कैसी अद्भुत चाहत है , यह सावन की दावत है .
भावत  है सो भावत है , मुंकिर क़दम बढ़ावत है .

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