Monday, August 4, 2014

Junbishen 222


रूबाइयाँ 

कब तक ते रवादारियाँ जायज़ होंगी,
औरत की ये कुरबानियाँ जायज़ होंगी,
हर रोज़ तलाक़ और हल्लाला ओ निकाह?
कब तक ये कलाकारयाँ जायज़ होंगी,


शैतान को भड़काते, किसी ने देखा?
आवाज़ सुनी उसकी, किसी नें समझा?
आओ मैं दिखता हूँ अगर चाहो तो,
तबलीग के परदे में छिपा है बैठा.


ईसाई गनीमत हैं, बदल जाते हैं,
हालात के साँचे में ही ढल जाते हैं,
फ़ितरत के हुए कायल, साइंस शुआर,
मजलिस की जिहालत से निकल जाते हैं.

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