Friday, September 14, 2012

Rubaiyan -13


रुबाइयाँ  

क्यों सच के मज़ामीन यूँ मल्फूफ़ हुए, 
फ़रमान बजनिब हक, मौकूफ हुए, 
इंसान लरज़ जाता है गलती करके, 
लग्ज़िश के असर में खुदा मौसूफ़ हुए. 

ग़ारत हैं इर्तेक़ाई मज़मून वले, 
अज़हान थके हो गए, ममनून वले,
साइन्स के तलबा को खबर खुश है ये, 
इरशाद हुवा "कुन" तो "फयाकून"वले,

काफ़िर है न मोमिन, न कोई शैताँ है, 
हर रूप में हर रंग में यही इन्सां है, 
मज़हब ने, धर्म ने, किया छीछा लेदर, 
बेहतर है मुअतक़िद नहीं, जो हैवाँ है. 

तुम अपने परायों की खबर रखते थे, 
हालात पे तुम गहरी नज़र रखते थे, 
रूठे  हों कि छूटे हों तुम्हारे अपने, 
हर एक के दिलों में, घर रखते थे. 
* 

बेयार ओ मददगार हमें छोड़ गए, 
कैसे थे वफ़ादार हमें छोड़ गए, 
अब कौन निगहबाने-जुनूँ होगा मेरा, 
लगता है कि घर बार हमें छोड़ गए. 

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