ला इल्मी का पाठ पढाएँ, अन पढ़ मुल्ला योगी,
दुःख दर्दों की दवा बताएँ खुद में बैठे रोगी.
तन्त्र मन्त्र की दुन्या झूठी, बकता भविश्य अयोगी,
अपने आप में चिंतन मंथन सब को है उपयोगी.
आँखें खोलें, निंद्रा तोडें, नेता के सहयोगी,
राम राज के सपन दिखाएँ सत्ता के यह भोगी.
बस ट्रकों में भर भर के ये भेड़ बकरियां आईं,
ज़िदाबाद का शोर मचाती नेता के सहयोगी.
पूतों फलती, दूध नहाती रनिवास में रानी,
अँधा रजा मुकुट संभाले, मारे मौज नियोगी.
"मुकिर' को दो देश निकला, चाहे सूली फांसी,
दामे, दरमे,क़दमे, सुखने, चर्चा उसकी होगी.
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दामे,दरमे,क़दमे,सुखने=हर अवसर पर
बस ट्रकों में भर भर के ये भेड़ बकरियां आईं,
ReplyDeleteज़िदाबाद का शोर मचाती नेता के सहयोगी.
वाह! क्या बात है....
उम्दा गज़ल....
सादर बधाई...
पूतों फलती, दूध नहाती रनिवास में रानी,
ReplyDeleteअँधा रजा मुकुट संभाले, मारे मौज नियोगी.
सुभान अल्लाह..ग़ज़ल क्या है आज के हालत की सच्ची तस्वीर है...बधाई
नीरज
आँखें खोलें, निंद्रा तोडें, नेता के सहयोगी,
ReplyDeleteराम राज के सपन दिखाएँ सत्ता के यह भोगी...
बहुत खूब ... गज़ल के माध्यम से वर्तमान की तस्वीर उतार डी है आपने ... लाजवाब अल्फाजों को पिरोया है ...
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है.... बधाई .....
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मुंकिर साहब
सस्नेहाभिवादन ! आदाब !
आपकी इस रचना पर कुछ कहने भर से मेरी बात पूरी नहीं होगी …
आपकी बहुत सारी पुरानी पोस्ट्स पढ़ कर मैं निःशब्द हो गया हूं …
आपको बराबर पढ़ना पड़ेगा … और पढ़ते रहना पड़ेगा ।
हिन्दू के लिए मैं इक मुस्लिम ही हूं आख़िर,
मुस्लिम ये समझते हैं गुमराह है काफिर,
इनसान भी होते हैं कुछ लोग जहां में,
गफलत में हैं ये दोनों ,समझाएगा 'मुंकिर'
आपके ब्लॉग को फॉलो किया है जनाब !
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आप लोगों का आभारी हूँ. मेरी कद्रो-क़ीमत आँकने का शुक्रिया.
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