Friday, August 26, 2016

Junbishen 752




ग़ज़ल

जब तक रवा रखोगे, मेरे साथ तुम बुख़ालत,
तब तक न कर सकूँगा, मेरे यार मैं क़िनाअत।

 बेदारियां ये कैसी? कि खिंचता है सम्त ए माज़ी ,
बेहोशी ही भली थी, तेरा सोना ही ग़नीमत .

क़ुर्बानियों का जज़्बा, मज़ाहिब की तश्नगी है ,
खूराक इनको भाए, वफ़ादारों की शहादत 
.
 लिपटा हुवा जवाँ है, मज़ारों के देवता से, 
शर्मिंदा जुस्तुजू है, हमागोश है अक़ीदत .

मुमकिन नहीं की ख़ालिक़, अगर हो तो मुन्तक़िम हो, 
होगा अगर जो होगा , माँ बाप की ही सूरत. 

मेरी तरह ही तुम भी, हटा लोगे बोझ दिल का ,
क्या शय है फ़िक्र ए मुंकिर, ज़रा समझो इसकी क़ीमत. 

غزل 

جب تک روا رکھو گے ، میرے ساتھ تم بخا لت 
تب تک نہ کر سکون گا ، میرے یار میں قناعت 

بیداریاں یہ کیسی کہ ، کھنچتا ہے سمت ماضی 
بے ہوشی ہی بھلی تھی ، ترا سونا ہی غمیمت 

قربانیوں کا جذبہ ، مذاہب کی تشنگی ہے 
خوراق انکو بھاۓ ، وفا داروں کی شہادت 

لپٹا ہوا جواں ہے ، مزاروں کے دیوتا سے
شرمندہ جستجو ہے ، ہمّہ گوش ہے عقیدت 

ممکن نہیں کہ خالق ، اگر ہو تو منتقم ہو 
ہوگا اگر جو ہوگا ، ماں باپ کی ہی صورت 

میری طرح ہی تم بھی ، ہٹا لوگے بوجھ دل کا 
کیا شے ہے فکر منکر ، ذرا سمجھو اسکی قیمت 



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