Friday, November 6, 2015

Junbishen 709



- - - और नीत्शे ने कहा - - -

ऐ पैकरे-मज़ालिम1 ! हो तेरा नाम कुछ भी,
गर तू है कार ए फ़रमाँ2, इस कायनात ए हू३ का?
कुछ जुन्बिशें है दिल की, इन को सबात४ दे दे।

क्यूं छूरियूं में तेरे, कुछ धार ही नहीं है?
इक वार वाली तेरी, तलवार ही नहीं है?
है कुंद तेरा खंजर, बरसों में रेतता है?
तीरों में तेरी नोकें कजदार क्यूं मुडी हैं?

फाँसी के तेरे फंदे क्यूं ढीले रह गए हैं?
मख़लूक़५ के लिए ये, त्रिशूल क्यूं चुना है?
ये हरबा ए अज़ीयत६, तुझ को पसंद क्यूं है?
यक लख्त७ मौत तुझ को, क्यूं कर नहीं गवारा?

ऐ ग़ैर मुअत्रिफ़ ८ ! तू , सीधा सा तअर्रुफ़९ दे,
क्या चाहता है सब से, इक साँस में बता दे।
हो सोना या कि चांदी, हीरे हों याकि मोती?
ज़ाहिर है तू कहेगा, कुछ भी नहीं ये कुछ भी,

तू चाहता है सब से, इक इक लहू की बूँदें,
जैसे दिया है तूने, वैसे ही लेगा वापस,
मय सूद ब्याज ज़ालिम, हैं तेरे मज़ालिम10,
इंसान हों कि हैवाँ, हों कितना भी परेशां,

सासों के लालची सब, हर हाल में जिएँगे,
सासों का मावज़ा दें, फ़िर तुझ को ही सदा दें।
इंसान जो ख़िरद११ है,सजदों में जी रहा है,
हैवाँ जो है तग़ाफ़ुल१२, वह तुझ पे भौन्कता है।

१-अत्याचार २-चलने वाला ३-ब्रह्माण्ड -ठहराव ५-जीव ६-वेदना यंत्र ७-एक साथ ८-अनजान ९-पिरचय 
१०-अत्याचार ११-समझ १२-गफलत.

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