Monday, September 1, 2014

Junbishen 234



नज़्म 

ग़ुबार 

कुछ फ़ी सदी तरक्क़ी , हिदोस्तां की यारों ,
धर्मों ने खा लिया है , मज़हब ने पी लिया है .
लम्हे मशक़्क़तों के , बर्बाद हो रहे हैं ,
सजदों में जा रहे हैं , घन्टे बजा रहे हैं. 

ज्योतिष पे न्यूँ डाले , हर झूट को संभाले ,
तंजीमें बन रही हैं , ज़हरें उगल रही हैं .
टी वी के चैनलों पर ये राम भरोसे हैं ,
विज्ञानी थालियों में , अज्ञान परोसे हैं .

बनते जगत गुरु हैं , दुन्या में ज़र्द रू हैं . 
इनके शरण न जाओ, पहचान अपनी पाओ .
धर्मो का विष त्यागो , धर्मो से दूर भागो .
सच के गगन पे छाओ , विज्ञान को निभाओ .

धरती के कुछ नियम हैं , ये धर्म बस भरम हैं .
खुद अपने में बशर है ,सब खुद पे मुनहसर है .
मज़हब है एक साज़िश , समझो मेरी गुज़ारिश ,
बाहर से ये भले हैं , अन्दर से खोखले हैं .

धर्मी मेरे अमल हों , सच्चाई पर अटल हों ,
लालच न फ़ायदे हों ,डर हो न दबदबे हों .
हम ऐसे मुस्कुराएँ , मुजरिम न खुद को पाएँ 
हर चेहरे पर ख़ुशी हो , आबाद ज़िन्दगी हो .

गर अपना देश भारत धर्मों से पाक होता ,
पश्चिम हमारे आगे जूती की खाक होता .
होती गराँ न रोटी , छत और ये लंगोटी .
मय नोश हम भी होते , बा होश हम भी होते .

शीशे के घर में रहते , ये मुफ़लिसी न सहते .
तालीम होती लाज़िम , हम होते सब मुलाजिम .
घर बिजली मुफ़्त होती , हम को भी कार ढोती .
पाखंड न राज करता , सच सजता और संवरता .

दहकाँ शबाब पाता , मज़दूर गुनगुनाता ,
जोगी ये नर न बनता , मज़मून पर निखरता ,
न गुंडा राज होता , सच्चे पे ताज होता .
धर्मो ने मार डाला , मज़हब ने डाका डाला .

ऐ साकिनान भारत , थोड़ी सी ही जिसारत ,
है वक़्त जाग जाओ , मत झूट को निभाओ ,
अमरीका मुन्तज़िर है , योरोप को आस फिर है ,
तुम पूरे सो जो जाओ , बस धर्म को बचाओ ,
वह तुम को जाम कर दें , फिर से ग़ुलाम कर दें 

1 comment:

  1. ख़्वाबों ख्यालों में जिसके, ख़ोजा-ओ-शीशा घर है..,
    जेरे-खीसा-ओ-ख़िलअत, खुरमा-ओ-मालो-तर है..,
    मख़लूको-मजहब के माने, उसके लिए लवाजिम..,
    लिल्लाह सजदे में सर है, दरबारों-पेश है ज़िम.....

    ख़ोजा = बादशाहों का नौकर
    जेरे-खीसा-ओ-ख़िलअत == मालामाल जेब वाला लिबास
    मख़लूको-मजहब = सृष्टि और मजहब
    लवाजिम = लदान
    खुरमा-ओ-मालो-तर = खाना-खजाना

    यू मख़लूतुन्नस्ल

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