गज़ल
खुद से चुनी अज़ीयत ,
रोज़ा नफ़िल तहारत .
तामीर है नफी में ,
है इक जुनूं इबादत .
दो बीवी तेरह बच्चे ,
अल्लाह तेरी रहमत .
सब्र ओ रज़ा का चेहरा ,
दर पर्दा ए बुखालत .
बे तुख्म का बशर था ,
सुबहान तेरी क़ुदरत .
इज्ज़त दे चाहे ज़िल्लत ,
मल्हूज़ हो दयानत .
मशहूर हो रहा है ,
मुंकिर बफ़ज्ल ए तोहमत।
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