Tuesday, September 23, 2014

Junbishen 233


गज़ल

खुद से चुनी अज़ीयत ,
रोज़ा नफ़िल तहारत .

तामीर है नफी में ,
है इक जुनूं इबादत .

दो बीवी तेरह बच्चे ,
अल्लाह तेरी रहमत .

सब्र ओ रज़ा का चेहरा ,
दर पर्दा ए बुखालत .

बे तुख्म का बशर था ,
सुबहान तेरी क़ुदरत .

इज्ज़त दे चाहे ज़िल्लत ,
मल्हूज़ हो दयानत .

मशहूर हो रहा है ,
मुंकिर बफ़ज्ल ए तोहमत। 

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