Saturday, March 30, 2013

नज़्म



अहसासात--- टुकड़े टुकड़े  


तेज़ तर तीर की तरह तुम हो, 
नसलो! तुम को निशाना पाना है।
हम हैं बूढे कमान की मानिंद, 
बोलो कितना हमें झुकाना है?

***

सुल्हा कर लूँ कि ऐ अदू तुझ से, 
मैं ने तदबीर ही बदल डाली,
तेरे जैसा ही क्यूं न बन जाऊं, 
अपने जैसा ही क्यों बनाना है।

***

रोज़े रौशन को छीन लेती है, 
तू कि ऐ गर्दिशे ज़मीं हम से,
हम हैं सूरज के वंशजों से मगर, 
सर पे तारीक2 ये ख़जाना है।

***

कौडी कौडी बचा के रक्खा है, 
तिनका तिनका सजा के रक्खा है,
गीता संदेश कुछ इशारा कर, 
हम ने जोड़ा है किस को पाना है।

***

बारी बारी से सोते जगते हैं,
 मेरे कांधों पे दो फ़रिश्ते ये,
हम सवारी ग़मो खुशी के हैं, 
रोते हँसते नजात पाना है।

***

आप के पास भी अन्दाज़ा है, 
है हमारे भी पास तख़मीना,
आप ने माना एक वाहिद को, 
हम ने छत्तीस करोर माना है।

***

तू है क़ायम फ़क़त गवाही पर, 
सदियाँ गुज़रीं गवाह गुज़रे हुए,
हिचकिचाहट है इल्म नव3 को अब, 
तुझ को नुक्तों पे आज़माना है।

***

तेरे एह्काम4 की करूँ तामील, 
फ़ायदे कुछ न चाहिए मुझ को,
आसमानों से झाँक कर तुझ को,
सिर्फ़ इक बार मुस्कुराना है।


१-दुश्मन २-अँधेरा ३-नई शिक्षा ४-आज्ञा



6 comments:

  1. तेरे एह्काम4 की करूँ तामील,
    फ़ायदे कुछ न चाहिए मुझ को,
    आसमानों से झाँक कर तुझ को,
    सिर्फ़ इक बार मुस्कुराना है।-बहुत बेहतरीन नज़्म
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  2. बेतरतीब बेतौर है गर्दूं उसका..,
    आफताब गर्दो- गुबार लिए..,
    बिखरे हुवे से सितारे है..,
    न चाँद का कहीं ठिकाना.....

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  3. बेहतरीन नज़्म.....

    अनु

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  4. ...
    तेरे जैसा ही क्यूं न बन जाऊं,
    अपने जैसा ही क्यों बनाना है।

    सारे झगडे ही मिट जायेंगे इस सोच के चलते

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  5. बारी बारी से सोते जगते हैं,
    मेरे कांधों पे दो फ़रिश्ते ये,
    हम सवारी ग़मो खुशी के हैं,
    रोते हँसते नजात पाना है।

    ...बहुत खूब! लाज़वाब अभिव्यक्ति...

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  6. आप के पास भी अन्दाज़ा है,
    है हमारे भी पास तख़मीना,

    बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!!
    पधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...

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