Friday, April 27, 2012

ग़ज़ल- - - चेहरे यहाँ मुखौटे हैं और गुफ्तुगू हुनर





चेहरे यहाँ मुखौटे हैं और गुफ्तुगू हुनर,
खाते रहे फरेब हम, कमज़ोर थी नज़र।


हैं फायदे भी नहर के पानी है रह पर,
लेकिन सवाल ये है, यहाँ डूबे कितने घर।


पाले हुए है तू इसे अपने खिलाफ क्यूँ ,
ये खौफ दिल में तेरे है अंदर का जानवर।


होकर जुदा मैं खुद से तुहारा न बन सका,
तुम को पसंद जुमूद था मुझ को मेरा सफ़र।


पुख्ता भी हो, शरीफ भी हो , और जदीद भी,
फिर क्यूँ अज़ीज़ तर हैं तुम्हें कुहना रहगुज़र।


हस्ती का मेरे जाम छलकने के बाद अब,
इक सिलसिला शुरू हो, नई रह हो पुर असर।

जुमूद=ठहराव *जदीद=नवीन *कुहना रहगुज़र=पुरातन मार्ग

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