Thursday, February 16, 2012

ग़ज़ल - - -गर एतदाल हो तो चलो गुफ्तुगू करें





गर एतदाल हो तो चलो गुफ्तुगू करें,
तामीर रुक गई है इसे फिर शुरू करें.




इन कैचियों को फेकें, उठा लाएं सूईयाँ,
इस चाक दामनी को चलो फिर रफू करें।




इक हाथ हो गले में तो दूजे दुआओं में,
आओ कि दोस्ती को कुछ ऐसे रुजू करें।




खेती हो पुर खुलूस, मुहब्बत के बीज हों,
फासले बहार आएगी, हस्ती लहू करें।




रोज़ाना के अमल ही हमारी नमाजें हों,
सजदा सदक़तों पे, सहीह पर रुकु करें।




ए रब कभी मोहल्ले के बच्चों से आ के खेल,
क़हर ओ गज़ब को छोड़ तो "मुंकिर"वजू करें.
******************
*एतदाल=संतुलन *तामीर=रचना *पुर खुलूस=सप्रेम *रुकु=नमाज़ में झुकना *वजू=नमाज़ कि तय्यारी को हाथ मुंह धोना

1 comment:

  1. बेहद खूबसूरत गज़ल...आज इत्तेफाकन आपके ब्लॉग पर आना हुआ...एक-डॉ रचनाएँ ही पढ़ी हैं अभी,,,पर जितना पढ़ा बेहतरीन लिखा है ... आज ही आपके ब्लॉग में शामिल हो रही हूँ
    साभार!
    blog par se Word verification hata len dippani dene me kathinai hoti hai

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