जहान ए अर्श का बन्दा है, बार ए अन्जुमन होगा,
मसाइल पेश कर देगा, नशा सारा हिरन होगा.
मुझे दो गज़ ज़मीन देदे अगर शमशान में अपने,
मज़ार ए यार पे अर्थी जले तेरी, मिलन होगा.
मिले हैं पेट पीठों से, तलाशी इनकी भी लेना,
कहीं कुछ अन्न मिल जाए तो बाकी है हवन होगा.
वो जिस दिन से गलाज़त साफ़ करना बंद कर देगा,
कोई सय्यद न होगा और न कोई बरहमन होगा.
अपीलें सेक्स करता हो, तो ऐसा हुस्न है बरतर,
अजब मेयार लेके हुस्न का अब बांक पन होगा.
फिरी के, गिफ्ट के, और मुफ्त के, हमराह हैं सौदे,
खरीदो मौत गर "मुंकिर" तो तौफ़े में कफ़न होगा.
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अच्छी ग़ज़ल है!
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मित्रता दिवस पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
धन्यवाद.
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