Tuesday, August 9, 2011

ग़ज़ल - - - तुम भी अवाम की ही तरह डगमडा गए


 
तुम भी अवाम की ही तरह डगमडा गए,
मेरे यकीं के शीशे पे पत्थर चला गए.
 
 
घायल अमल हैं और नज़रिया लहू लुहान,
तलवार तुम दलीलों की ऐसी चला गए.
 
 
मफरूज़ा हादसात तसुव्वुर में थे मेरे,
तुम कार साज़ बन के हक़ीक़त में आ गए.
 
 
पोशीदा एक डर था मेरे ला शऊर में,
माहिर हो नफ़्सियात के चाकू थमा गए.
 
 
भेड़ों के साथ साथ रवाँ आप थे जनाब,
उन के ही साथ गिन जो दिया तिलमिला गए.
 
 
खुद एतमादी मेरी खुदा को बुरी लगी,
सौ कोडे आ के उसके सिपाही लगा गए.
*****
*मफरूज़ा=कल्पित *कार साज़=सहायक *ला शऊर=अचेतन मन *नफ़्सियात=मनो विज्ञानं *खुद एतमादी=आत्म विश्वास

2 comments:

  1. kya baat hai janaab kya baat hai...ek sher to seedha dil mein utraa hai

    भेड़ों के साथ साथ रवाँ आप थे जनाब,
    उन के ही साथ गिन जो दिया तिलमिला गए.

    waah!!

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