Tuesday, June 2, 2009

रुबाइयाँ


रुबाइयाँ

सच्चे को बसद शान ही, बन्ने न दिया
बस साहिबे ईमान ही, बन्ने न दिया
पैदा होते ही कानों में, फूँक दिया झूट
इंसान को इंसान ही, बन्ने न दिया
*
ये लाडले, प्यारे, ये दुलारे मज़हब
धरती पे घनी रात हैं, सारे मज़हब
मंसूर हों, तबरेज़ हों, या फिर सरमद
इन्सान को हर हाल में, मारे मज़हब
*
हैवान हुवा क्यूँ न भला, तख्ता ए मश्क़
इंसान का होना है, रज़ाए अहमक
शैतान कराता फिरे, इन्सां से गुनाह
अल्लाह करता रहे, उट्ठक बैठक
*****

7 comments:

  1. बहुत खूब। एक शायर की पंक्तियाँ हैं कि-

    यह देखकर पतंगें भी हैरान हो गयी।
    अब तो छतें भी हिन्दू मुसलमान हो गयीं।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

    ReplyDelete
  2. अहा जुनैद साब....
    सुंदर !
    विशेष कर इस "बन्ने न दिया" की अदा ने मन मोह लिया।

    ReplyDelete
  3. और विनती है आपसे सर कि इस वर्ड-वेरिफिकेशन को हटा दीजिये अपने सेटिंग से। इससे कोई फायदा नहीं होता ...उल्टा टिप्पणी करने वाले को हतोत्साहित करता है।

    ReplyDelete
  4. हैवान हुवा क्यूँ न भला तख्ता ए मश्क़,
    इंसान का होना है रज़ाए अहमक,
    शैतान कराता फिरे इन्सां से गुनाह,
    अल्लाह करता रहे उट्ठक बैठक. nice

    ReplyDelete
  5. Namaskaar,

    main kaunsa band uthaaun..main kis misre ki taareef karun...baat seedhe dil par lagi hai. bharpoor daad... main aapse personally contact karna chahta tha par apka email nahi milaa. ap bahut umdaa likhte hain.

    Gaurav

    ReplyDelete
  6. बहुत ही उम्दा और मेआरी ख़यालात से
    रु.ब.रु होने का मौक़ा मिला है
    ऐसी खूबसूरत रुबाइयात के लिए
    मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं

    ReplyDelete