Wednesday, March 21, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 6




6 

तअलीम नई जेह्ल1 मिटाने पे तुली है,
रूहानी वबा है, कि लुभाने पे तुली है.

बेदार शरीअत3 की ज़रूरत है ज़मीं को,
अफ़लाक4 की लोरी ये सुलाने पे तुली है.

जो तोड़ सकेगा, वो बनाएगा नया घर,
तरकीबे रफ़ू, उम्र बिताने पे तुली है.

वह कौन है लोगों की जमाअत कि ज़मीं पर ,
बस ज़िन्दगी का जश्न, मनाने पे तुली है.

मैं इल्म की दौलत को, जुटाने पे तुला हूँ,
क़ीमत को मेरी भीड़, घटाने पे तुली है.

'मुंकिर' की तराज़ू पे, अनल हक़5 वज़न है,
"जुंबिश"है कि तस्बीह के दाने पे तुली है.

१-अंध विशवास २-आध्यात्मिक रोग ३-बेदार शरीअत=जगी हुई नियमावली ४-आकाश ५- मैं ख़ुदा हूँ 


،تعلیم نئی جہل مٹانے پہ تُلی ہے
روحانی وبا ہے کہ لُبھانے پہ تُلی ہے٠ 

،جو توڑ سکےگا وہ بناۓ گا نیا گھر
ترکیبِ رفو عمر بتانے پہ تُلی ہے. 

،بیدار شریعت کی ضرورت ہے زمیں کو
 کی یہ لوری سُلانے پہ تُلی ہے٠ افلاک

،وہ کون ہے لوگوں جماعت کہ زمیں پر 
بس زندگی کا جشن منانے پہ تُلی ہے٠ 

،میں علم کی دولت کو جُٹانے پہ تُلا ھوں 
قیمت کو میری بھیڑ گھٹانے پہ تُلی ہے٠ 

،منکر کے ترازو پہ انلحق کا وزن ہے
جنبش ہے کہ تصبیح کے دانے پہ تُلی ہے٠

No comments:

Post a Comment