Friday, April 1, 2016

Junbishen 771



ग़ज़ल

मोहलिक तरीन रिश्ते, निभाए हुए थे हम,
बारे गराँ को सर पे, उठाए हुए थे हम.

खामोश थी ज़ुबान, कि  अल्फ़ाज़  ख़त्म थे,
लाखों गुबार दिल में दबाए हुए थे हम.

ठगता था हम को इश्क, ठगाता था खुद को इश्क,
कैसा था एतदाल, कि पाए हुए थे हम.

गहराइयों में हुस्न के, कुछ और ही मिला,
न हक़ वफ़ा को मौज़ू ,बनाए हुए थे हम.

उसको भगा दिया कि वोह, कच्चा था कान का,
नाकों चने चबा के, अघाए हुए थे हम.

सब से मिलन का दिन था, बिछड़ने की थी घडी,
'मुंकिर' थी क़ब्रगाह, कि  छाए हुए थे हम,
*****
*मोहलिक तरीन =हानि कारक *बारे गराँ=भारी बोझ *एतदाल=संतुलन *मौज़ू=विषय.



غزل

محلق ترین رشتے، نبھاۓ ہوئے تھے ہم، 
بار گراں کو سر پہ، اٹھاۓ ہوئے تھے ہم ٠ 

خاموش تھی زبان، کہ الفاظ ختم تھے 
لاکھوں غبار دل میں، دباے ہوئے تھے ہم ٠ 

ٹھگتا تھا عشق اور ٹھگاتا تھا خود کو عش
 کیسا تھا عتدال، کہ پاۓ ہوئے تھے ہم ٠ 

گہرایوں میں عشق کے، کچھ اور ہی ملا
نا حق وفا کو رکن، بناے ہوئے تھے ہم ٠ 

اسکو بھگا دیا، کہ وہ کچا تھا کان کا
ناکوں چنے چبا کے، اگھاۓ ہوئے تھے ہم ٠ 

سب سے ملن کا دن ہے ، بچھاڑ نے کا دن بھی ہے، 
منکر تھی قبر گاہ، کہ چھاۓ ہوئے تھے ہم ٠ ٠ 

^^^^^^^^^^^^^

1 comment: