Friday, February 5, 2016

Junbishen 747




नज़्म 

महा  जननी भवः

ठहरो, वर-माला मत डालो, दो इक सदियाँ टालो,
बधू , तुम्हारा वर कैसा हो? खोजो और खंगालो।

संस्कार की जड़ता देखो, भूल चूक स्वीकारो,
नव दर्शन की की महिमा समझो, अंधी सोच निकालो।

मिथ्या,पाखंड,भेद भाव और दीन धरम के मारे,
हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई, बौध, जैन मत पालो।

जिस ने जीत लिया हो जग को, मर्यादा रच ली हो,
ऐसा सरल, सबल, शुभ, साथी मिले तो शीश नवा लो।

स्मारक बना जाएँ तुम्हारी संताने छित्जों पर,
एक महा मानव को जन्मो, उसमे सबको ढालो।

डावांडोल है धरती माता, नीच हीन हाथों में,
धरती जननी तुम भी जननी, धरती तुम ही संभालो।

हरो वर-माला मत डालो ----

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