नज़्म
उन्नति शरणम् गच्छामि
गौतम था बे नयाज़ ए अलम1, जब बड़ा हुवा,
महलों की ऐश गाह में, इक ख़ुद कुशी किया।
पैदा हुवा दोबारा, हक़ीक़त की कोख से,
तब इस जहाँ के क़र्ब2 से, वह आशना हुवा।
देखा ज़ईफ़3 को तो, हुवा ख़ुद नहीफ़4 वह,
रोगियों को देख के, बीमार हो गया।
मुर्दे को देख कर तो, वह मायूस यूँ हुवा,
महलों की ऐश गाह से, संन्यास ले लिया।
बीवी की चाहतों से, रुख अपना मोड़ कर,
मासूम नव निहाल को भी, तनहा छोड़ कर,
महलों के क़ैद खानों से, पाता हुवा नजात,
जंगल में जन्म पाया था, जंगल को चल दिया.
असली ख़ुदा तलाश वह, करता रहा वहां,
कोई ख़ुदा मिला न उसे, यह हुवा जरूर
वह इन्क़्शाफ़ v सब से बड़े, सच का कर गया,
"दिल में है अगर अम्न, तो समझो ख़ुदा मिला"।
सौ फ़ीसदी था सच, जो यहाँ तक गुज़र गया,
अफ़सोस का मुक़ाम है, जो इसके बाद है,
शहज़ादे के मुहिम की, शुरुआत यूँ हुई,
तन पोशी, घर, मुआश बतर्ज़े-गदा6 हुई।
दर असल थी मुहिम, हो ख़ुदाओं का सद्दे-बाब7,
मुहमे-अज़ीम8 थी, कि जो राहें भटक गई,
राहों में इस अज़ीम के, जनता निकल पड़ी,
उसने महेल को छोड़ा था, और इसने झोपडी।
शीराज़ा9 बाल बच्चों के, घर का बिगड़ गया,
आया शरण में इसके जो, वह भिक्षु बन गया।
मानव समाज कि धुरी, जो डगमगा गई।
मेहनत कशों पे और, क़ज़ा10 दूनी हो गई।
काहिल अमल फ़रार, ये हिन्दोस्तां हुवा,
जद्दो-जेहद का देवता, चरणों में जा बसा,
तामीर11 क़ौम के रुके, सदियाँ गुज़र गईं,
'मुंकिर' खुमार बुत का ये, छाया है आज तक,
माज़ी गुज़र गया है, बुरा हाल है बसर।
आबादियों को खाना, न पानी है मयस्सर ,
ज़ेरे सतर ग़रीबी12, जिए जा रहे हैं हम,
बानी महात्मा की, पिए जा रहे हैं हम.
१-दुःख से अज्ञान 2 -पीडा ३-बृध ४-कमज़ोर ५-उजागर करना ६-भिखारी की तरह जीवन यापन ७-समाप्त होना ८-महान ९-प्रबंधन १०-मौत ११-रचना १२-गरीबी रेखा
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