Wednesday, May 8, 2013

Junbishen 1 3


दोहे 

जिनके पंडित मोलवी  घृणा पाठ पढ़ाएँ ,
दीन धरम को छोड़ के , वह मानवता अपनाएं .
*
क़ुदरत ही है आइना, प्रकृति ही है माप,
तू भी उसका अंश है, तू भी उसकी नाप।
*
बा-मज़हब मुस्लिम रहे, हिदू रहे सधर्म,
अवसर दंगा का मिला, हत्या इन का धर्म।
*
गति से दुरगत होत है, गति से गत भर मान,
गति की लागत कुछ नहीं, गति के मूल महान।
*
काहे हंगामा करे, रोए ज़ारो-क़तार,
आंसू के दो बूँद बहुत हैं, पलक भिगोले यार।

4 comments:

  1. बेहतरीन सार्थक दोहे,आभार.

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2013) के "मेरी विवशता" (चर्चा मंच-1240) पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. वाह ... बेहतरीन

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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