Monday, April 30, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 45




 45

अनसुनी सभी ने की, दिल पे ये मलाल है,
मैं कटा समाज से, क्या ये कुछ ज़वाल है.

कुछ न हाथ लग सका, फिर भी ये कमाल है,
दिल में इक क़रार है, सर में एतदाल है.

जागने का अच्छा फ़न, नींद से विसाल है,
मुब्तिला ए रोज़ तू , दिन में पाएमाल है.

ख्वाहिशों के क़र्ज़ में, डूबा बाल बाल है,
ख़ुद में कायनात ए मन, वरना मालामाल है.

है थकी सी इर्तेक़ा, अंजुमन निढाल है,
उठ भी रहनुमाई कर, वक़्त हस्ब ए हाल है.

पेंच ताब खा रहे हो, तुम ग़लत जुनैद पर,
खौ़फ़ है कि किब्र? है कैसा ये जलाल है.

***

،ان سُنی سبھی نے کی، دل پہ ملال ہے 
میں سماج سے کٹا، کیا یہ کچھ زوال٠ 

،کچھ نہ ہاتھ لگ سکا، پھر بھی یہ کمال ہے  
دل میں اک قرار ہے، سر میں اعتدال ہے٠ 

،جاگنے کا اچھا فن، نیند سے وصال ہے 
مبتلاء روز تو، شب میں پائمال ہے٠ 

،خواہشوں کے قرض میں، ڈوبا بال بال ہے 
خود میں کائنات  من ، ورنہ مالا مال٠ 

،ہے تھکی سی ارتقاء، انجمن نڈھال ہے
اُٹھ بھی رہنمائی کر، وقت جسبِ حال  ہے. 

،پیچ و تاب کھا رہے ہو، تم غلط جنید پر 
خوف ہے کہ کِبر ہے، کیسا یہ جلال ہے٠ 

 

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