Sunday, April 15, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 30




30

ज़ेहनी दलील, दिल के तराने को दे दिया,
इक ज़र्ब ए तीर इस के, दुखाने को दे दिया.

तशरीफ़ ले गए थे, जो सच की तलाश में,
इक झूट ला के और, ज़माने को दे दिया.

तुम लुट गए हो इस में, तुम्हारा भी हाथ है,
तुम ने तमाम उम्र, ख़ज़ाने को दे दिया.

अपनी ज़ुबाँ, अपना मरज़, अपना ही आइना,
महफ़िल की हुज्जतों ने, दिवाने को दे दिया.

आराइशों की शर्त पे, मारा ज़मीर को,
अहसास का परिन्द, निशाने को दे दिया.

"मुंकिर" को कोई खौ़फ़, न लालच ही कोई थी,
सब आसमानी इल्म, फ़साने को दे दिया.

،ذہنی دلیل دل کے ترانے کو دے دیا 
اک ضربِ تیر اس کے دُکھانے کو دے دیا٠ 

،تشریف لے گئے تھے جو سچ کی تلاش میں 
اک جھوٹ لا کے اور زمانے کو دے دیا٠ 

،تُم لُٹ گئے تو اس میں، تمہارا بھی ہاتھ ہے 
تم نے تمام عمر، خزانے کو دے دیا٠ 

،اپنی زبان، اپنا مرض، اپنا ہی آئینہ 
محفل کی حُججتوں نے دوانے کو دے دیا٠ 

،آرائشوں کی شرط پر، مارا ضمیر کو 
احساس کا پرند، نشانے کو دے دیا٠ 

،منکر کو کوئی خوف، نہ لالچ ہی ہے کوئی
سب آسمانی علم ، فسانے کو دے دیا ٠ 


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