Friday, July 12, 2019

जुंबिशें दोहे

दोहे 

धन साधन चुक जाए जब , भूख का हो आभास ,
मुंकिर नाक दबाए के रोकीं लीनेह सांस .

دھن سادھن چک جاۓ جب ، بھوک کا ہو آبھاس
منکر ناک دباۓ کے ، روک لیں اپنی سانس
**
देखो उसके बाल ओ पर निकले हैं शादाब ,
सब से पहले ए हवा , दे मेरे आदाब .

 دیکھو انکے بال و پر ، نکلے ہیں شاداب  
سب سے پہلے ائے ہوا ، میرا دے آداب ٠ 

Thursday, July 11, 2019

मुस्कुराहटें


मुस्कुराहटें 
शेखू ----

हर सच पे ही लाहौल1 पढ़ा करता है शेखू ,
हर झूट दलीलों से गढ़ा करता है शेखू.

चाट करता है बेवाओं, यतीमों की अमानत,
कुफ़्फ़ारा2 दुआओं से, अदा करता है शेखू.

देता है सबक़ सब को, क़िनाअत 3की सब्र की.
ख़ुद मुर्ग़ ए मुसल्लम पे, चढ़ा करता है शेखू.

दो बीवी निंभाता है, शरीअत4 के तहत वह,
दोनों को फ़क़त निस्फ़,5 अता करता है शेखू.

हर शाम मुरीदों को चराता है इल्मे-ताक़,
हर सुब्ह इल्मे-ख़ाक पढ़ा करता है शेखू.

बख्शेगी इसे दुन्या, न बख्शेगा ख़ुदा ही,
'मुंकिर' ये ख़ताओं पे ख़ता करता है शेखू.

१-धिक्कार २- प्रायश्चित ३-संतोष ४-धर्म-विधान ५-आधा


شیخوووو 


ہر سچ پہ ہی لاحول، پڑھا کرتا ہے شیخو 
ہر جھوٹ دلیلوں سے، گڑھا کرتا ہے  شیخو٠ 

چٹ کرتا ہے بیواؤں ، یتیموں کی امانت 
کفّارہ دعاؤں سے، ادا کرتا ہے  شیخو٠ 

دیتا ہے سبق سب کو، قناعت کی رضا کی 
خود مرغ مسلّم پہ، چڑھا کرتا ہے  شیخو ٠ 

دو بیوی نبھاتا ہے ، شریعت کے تحت وہ 
دونوں کو فقط نصف، دیا کرتا ہے  شیخو٠ 

ہر شام مریدوں کو،  چراتا ہے حدیثیں 
خود جنکو شب و روز، گڑھا کرتا ہے شیخو ٠ 

بخشیگی اسے دنیا ، نہ بخشےگا خدا ہی 
منکرجی ! خطاؤں پہ خطا کرتا ہے  شیخو ٠ 

Wednesday, July 10, 2019

क़तआत

क़तआत


ढलान 

हस्ती है अब नशेब मे, सर है ढलान पर,
कोई नहीं कि, मेरे लिए खेले जान पर,
ख़ुद साए ने भी मेरे, यूँ तक़रार कर दिया,
सर पे है तेरे धूप, मेरा क़द है आन पर.
नशेब=नीचे ,

ڈھلان
ہستی ہے اب نشیب میں ، سر ہے ڈھلان پر 
کوئی نہیں جو میرے لئے ، کھیلے جان پر 
خود ساۓ نے بھی میرے ، یوں تکرار کر دیا 
سررج ہے میرے سر پہ ، مرا قد ہے ان پر ٠ 


इबरत का नज़ारा 

शमशान में जलती हुई, लाशों का नज़ारा,
या कब्र में उतरी हुई, मय्यत का इशारा,
देते हैं ये जीने का सबक़, अह्ल ए हवस को,
समझो तो समझ पाओ, कि कितना हो तुम्हारा   
عبرت کا نظارہ

شمشان میں جلتی ہوئی ، لاشوں کا نظارہ 
یا قبر میں اتری ہوئی ، میّت کا اِشارہ 
دیتے ہیں یہ جینے کا سبق ، اہلِ ہوس کو 
سمجھو تو سمجھ پاؤ کہ ، ہو کتنا تمہارا٠


काफ़ 

यह काफ़ सवालों का, उठाए है पिटारा,
कब?कौन?कहाँ?कैसे?कितने? हैं गवारा,
आ जाए सवालों में अगर क्यों?या मगर क्यों?
चढ़ जाता है सुन कर इसे ठहरा हुवा पारा।
    
کاف
یہ کاف سوالوں کا اٹھاۓ ہے پٹارہ 
کب، کون، کہاں، کیسے، کتنے، ہیں گوارہ
 جاۓ سوالوں میں اگر کیون یا مگر کیوں ؟
چڑھ جاتا ہے سُن کر اسے ، ٹھہرا ہوا پارہ٠ 

Tuesday, July 9, 2019

जुंबिशें रुबाइयात

रुबाइयात

जब तक नहीं जागोगे दलित और पिछडो,
आपस में लड़ोगे यूं ही शोषित बंदो,
ग़ालिब ही रहेंगे तुम पे ये मनुवादी,
ऐ अ.क्ल के अन्धो! और करम के फूटो !!

جب تک نہیں جاگوگے ، دلِت اور پِچھڑو 
آپس میں لڑوگے یوں ہی ، شوشِت بندو
کرتے ہی رہینگے راج ، منو وادی لوگ 
اے عقل کے اندھو ، اور کرم کے پھوٹو٠   

**
क्या शय है मनुवाद तेरा खोटा निज़ाम,
महफूज़ बरहमन के लिए हर इक जाम,
मैं ने है पढ़ा तेरी मनु स्मृति में,
सर शर्म से झुकता है, तेरा पढ़ के पयाम.

کیا شے ہے ، منو واد ، ترا کھوٹا نظام 
محفوظ برہمن کے لئے ، ہر اک جام 
میں نے ہے پڑھا ، تیری منو اسمرتی میں 
سر شرم سے جھکتا ہے ترا پڑھ کے پیام ٠  

***
मूसा सा अड़ा मैं तो क़बा खोल दिया, 
सदयों से पड़ी ज़िद की गिरह खोल दिया,
रेहल रख दिया, उसपे किताबे महशर,
पढ़ने के लिए उसने नदा खोल दिया.
क़बा=परिधान, महशर=क़यामत  

موسیٰ سا اڑا میں ، تو قبا کھول دیا 
صدیوں سے پڑی ضِد کی ، گِرہ کھول دیا 
رحل رخ دِیا ، اس پہ کتابِ محشر 
پڑھنے کے لئے ، اِس نے نِدا کھول دیا ٠ 

Monday, July 8, 2019

junbishen बड़ा सलाम


Nazm

बड़ा सलाम

ज़िंदगी इतनी क़ीमती भी नहीं,
यार कि, जितना तुम समझते हो.
यह रवायत1 के नज़्र होती है,
आधी जगती है, आधी सोती है.

तन का ढकना, है पेट का भरना,
धर्म ओ मज़हब की घास को चरना.
यह कभी क़र्ब२ से गुज़रती है,
कभी काटे नहीं, ये कटती है.

इसका अपना कोई निशाना हो,
ज़िन्दगी जश्न हो, तराना हो.
इसको मौके पे, काम आने दो,
जंगे-हक़३ पर, महाज़४ पाने दो.

इसका अंजाम, बालातर५ आए,
आख़िरी वक़्त में निखर जाए.
सच एलान कर के मर जाओ,
आख़िरी वक़्त में संवर जाओ.

मियां 'मुंकिर'! ज़रा सा काम करो,
ज़िंदगी को बड़ा सलाम करो.

१-कही सुनी बातें २-पीडा ३-सच्ची लडाई ४-मोर्चा ५-श्रेष्ट

بڑا سلام  

زندگی اتنی قیمتی بھی نہیں
یار کہ جتنا تم سمجھتے ہو
یہ روایت کے نذر ہوتی ہے
دن کو جگتی ہے رات سوتی ہے٠ 

تن کو ڈھکنا ہے ، پیٹ بھرنا ہے
دین دھرموں کی گھاس چرنا ہے
یہ سسکتے ہوئے گزرتی ہے،
کبھی کاٹے نہیں یہ کاٹتی ہے ٠

 اسکا اپنا کوئی نشانہ ہو
زندگی جشن ہو ترانہ ہو
اسکو موقع پہ کام آنے دو
جنگ حق کا پیام پانے دو٠ 

اسکا انجام بالا تر آے
آخری وقت میں نکھر جاۓ
سچ کا اعلان کر کے مر جاؤ  
آخری وقت میں سنوار جاؤ

میاں 'منکر' ذرا سا کام 
زندگی کو بڑا سلام  کرو ٠ 

Sunday, July 7, 2019

जुंबिशें ग़ज़ल


ग़ज़ल 

ग़ुस्ल व् वज़ू से, दाग़े अमल धो रहे हो तुम,
मज़हब की सूइयों से, रफ़ू हो रहे हो तुम.

हर दाना दाग़दार हुवा, देखो फ़स्ल का,
क्यूँ खेतियों में अपनी ख़ता, बो रहे हो तुम.

हथियार से हो लैस, हँसी तक नहीं नसीब,
ताक़त का बोझ लादे हुए, रो रहे हो तुम.

होना है वाक़ेआत ए मुसलसल वजूद का,
पूरे नहीं हुए हो, अभी हो रहे हो तुम.

इंसानी अज़मतों का, तुम्हारा ये सर भी है,
लिल्लाह पी न लेना, चरन धो रहे हो तुम.

"मुंकिर" को मिल रही है, ख़ुशी जो हक़ीर सी,
क्यूँ तुम को लग रहा है, कि कुछ खो रहे हो तुम.

*अजमतों=मर्याओं *लिल्लाह=शपत है ईश्वर की

غُسل و وضو سے داغِ عمل دھو رہے ہو تم
مذہب کی سوئیوں سے رفو ہو رہے ہو تم٠ 

ہر دانہ داغ دار ہوا، دیکھو فصل کا 
 کھیتیوں میں اپنی خطا بو رہے ہو تم٠ 

ہتھیار سے ہو لیس، ہنسی بھی نہیں نصیب 
طاقت کا بوجھ لادے ہوئے، رو رہے ہو تم٠ 

ہونا ہے واقعاتِ مسلسل وجود کا 
پورے نہیں ہوئے ہو، ابھی ہو رہے ہو تم٠ 

 انسانی عظمتوں کا، تمہارا یہ سر بھی ہے
لللہ پی نہ لینا، چرن دھو رہے ہو تم٠ 

منکر کو مل رہی ہے، خوشی جو حقیر سی 
 تم کویہ لگ رہا ہے، کہ کچھ کھو رہے ہو تم٠ 

Friday, July 5, 2019

जुंबिशें दोहे


दोहे 
काम किसी के आए न , वह मन का कंगाल ,
पूछे सब से खैरियत , पूछे सब से हाल .

کام کسی کے اے نہ وہ مان کا کنگال 
سب سے پوچھے خیریت ، پوچھے سب کا حال  
**
कूकुर से बछिया भए , बछिया से मृग राज 
नेता बैठे मंच पर , सर पे रख्खे ताज 

کوکر سے بچھیا بنے ، بچھیا سے مرگ راج 
نیتا بیٹھے منچ پر ، سر پہ  رکھکھے تاج 
***

अन चाह कुछ मशविरा , बिन माँगी कुछ राय ,
खा पी कर चलते बने , देकर राम सहाय 
.
ان چاہا کچھ مشورہ ، بن مانگی کچھ راۓ 
کھا پی کر چلتےبنے ، پنڈت رام سہاۓ  
****
दलित दमित शोषित सभी , धरम बदलते जाएँ ,
पूर्व जनम अंजाम को , पंडित जब तक गाएँ .

دلت دمت شوشت سبھی ، دھرم بدلتے جایں 
پورو جنم انجام کو پنڈت جب تک گاہیں 
*****

बस जा अपने आप में , फिर दुन्या की जान ,
पंडित जी की रागनी , मुल्ला जी की तान .

بس جا اپنے آپ میں ، پھر دنیا کی جان 
پنڈت جی کی راگنی ، مللہ جی کی تان 
*

Thursday, July 4, 2019

जुंबिशें मुस्कुराहटें


मुस्कुराहटें
मुहाविरों के बोल 

कुछ पाना, कुछ खोते रहना ,
तुम बस, रोते धोते रहना .

फूल की सेजें खोते रहना , 
राह में कांटे बोते रहना .

जो बोले दरवाज़ा खोले ,
जागे हो तो सोते रहना .

नौ मन तेल पे राधा नाचे ,
तेली बैल को जोते रहना .

आँख के अंधे नाम नयन सुख ,
सूरदास सब टोते रहना .

धोबी के कुत्ते मत बनना ,
घर के घाट के होते रहना .

भैंस है उसकी जिसकी लाठी ,
पाप की गठरी ढोते रहना .

नाच न आवे आँगन टेढ़ा , 
पीर की तीर चुभोते रहना .

भाग की रोटी जुरवा खाए ,
मुंकिर रूप को रोते रहना .

محاوروں کے فائدے 

جو کچھ پانا کھوتے رہنا ، بس تم روتے دھوتے رہنا 
جو بولے دروازہ کھولے ، جاگے ہو تو سوتے رہنا ٠ 
نو من تیل پہ رادھا ناچے ، تیلی بیل کو جوتے رہنا ٠ 
آنکھ کے اندھے نام نین سکھ ، سور دا س سب ٹوٹے رہنا ٠ 
دھوبی کے کتے مت بنا ، گھر کے گھا ٹ کے ہوتے رہنا ٠ 
بھینس ہے اسکی جسکی لاٹھی ، پا پ کی گٹھری ڈ ھوتے رہنا ٠ 
ناچ نہ آوے آنگن ٹیڑھا ، تعان کے بان چبھوتے رہنا ٠ 
آگے نکلوگے سب کے تم ، را ہ میں کانٹے بوتے رہنا ٠ 
بھاگیہ کے ہیرے جروا پہنے ، 'منکر' روپ کو روتے رہنا ٠ 

Wednesday, July 3, 2019

जुंबिशें क़तआत

क़तआत

प्रेत आत्माएं

जेब में कुछ ले के आए हो कि बस दर्शन किया,
मैं हूँ मर्यादा पुरूष, है मूल्य मेरा रूपया,
तुम ने ही जन्मा है हम को, नाम ज्ञानेश्वर दिया,
जी रहा हूँ ऐश से ऐ बेवकूफ़ो! शुक्रया.

پریت آتما ئیں 
جیب میں کُچھ لے کے آے ہو ، کہ بس درشن کیا 
میں ہوں مریادہ پُرش ، ہے مولیہ میرا روپیہ 
تُم نے ہی جنما ہے مُجھ کو ، نام گیانیشور دیا 
جی رہا ہوں عیش سے ، ائے بے وقوفو ! شکریہ ٠
**

प्रशंशनीय 

प्रदर्शनी प्रकृति की, नहीं पूजनीय है,
ये आपदा, विपदा भी, नहीं निंदनीय है,
भगवान् या शैतान नहीं होती है क़ुदरत,
जो कुछ मिला है उससे, वह प्रशंशनीय.
***
जल परी 

शाम आई भर नहीं, ऊबने लगता है दिल,
जाने क्यों गुम सी ख़बर, ढूँढने लगता है दिल,
याद आती है उसे तब, खूबसूरत जल परी,
जाके पैमाने में फिर, डूबने लगता है दिल.

جل پری 

شام آئ بھر نہیں کہ اوبنے لگتا ہے دل 
جانے کیوں گم سی خبر کو ڈھونڈھنے لگتا ہے دل 
یاد آتی ہے اسے تب خوب صورت جل پری
جا کے پیمانے میں پھر ڈوبنے لگتا ہے دل٠  

Tuesday, July 2, 2019

जुंबिशें रुबाइयात



रुबाइयात


बतलाई नई राह, पे चलना है तुम्हें,
सांचा है क़दामत का, न ढलना है तुम्हें,
ये दुन्या बहुत आगे निकल जाएगी,
इबहाम के आलम से निकलना है तुम्हें.
अब्हाम=वहम 

بتلائی نئی راہ پہ چلنا ہے تمہیں
سانچے میں قدا مت کے نہ ڈھلنا ہے تمہیں،
یہ دنیا بہت آگے نکل جاۓگی 
ابہام کے عالم سے نکلنا ہے تمہیں

**
ज़ालिम के लिए है तेरी रस्सी ढीली,
मज़लूम की चड्ढी रहे पीली  गीली,
औतार ओ पयम्बर को, दिखाए जलवा,
और हमको दिखाए, फ़क़त छत्री नीली. 

ظالم کے لئے ہے تری رسسی ڈھیلی 
مظلوم کی چڈھی رہےگیلی  پیلی 
اوتار پیمبر کو دکھاۓ جلوہ 
اورہمکو دکھاۓ فقط چھتری نیلی ٠ 

***
है रीश रवाँ, शक्ल पे गेसू है रवाँ ,
हँसते हैं परी ज़ाद सभी, तुम पे मियाँ, 
मसरूफ़ ए इबादत हो, मशक्क़त बईद,
करनी नहीं शादी तुम्हें? कैसे हो जवाँ.
बईद=दूर 

ہے ریش رواں شکل پہ ، گیسو ہیں رواں 
ہنستے ہیں پری زاد سبھی تم پہ میاں 
مصروف عبادت ہو ، مشقّت سے بعید
کرنی نہیں شادی تھیں ؟ کیسے ہو جواں ٠  

Monday, July 1, 2019

जुंबिशें नज़्म


     नज़्म 
शक बहक 

यक़ीं बहुत कर चुके हो यारो,
इक मरहला1 है, गुमाँ2 को समझो.
यक़ीं है अक्सर तुम्हारी ग़फ़लत,
ख़िरद3 के आबे-रवां को समझो .

अक़ीदतें और आस्थाएँ,
यक़ीं की धुंधली सी रह गुज़र4 हैं.
ख़रीदती हैं यह सादा लौही5,
यक़ीं की नाक़िस दुकाँ को समझो .

१-पड़ाव २-अविश्वाश का उचित मार्ग ३-अक्ल ४-सरल स्वभाव ५-हानि करक

شک  بحق

یقیں بہت کر چکے ہو یارو  
ہے مرحلہ اک گماں کو سمجھو ٠
یقیں ہے اکثر تمہاری غفلت
خرد کے آبِ رواں کو سمجھو ٠
عقیدتیں اور آستھیں 
یقیں کی دھندھلی سی رہ گزر ہیں 
خریدتی ہیں یہ سادہ لوحی 
یقیں کی ناقص دکاں کو سمجھو ٠   

Sunday, June 30, 2019

जुंबिशें ग़ज़ल


  ग़ज़ल 

महरूमियाँ सताएँ न, नींदों की रात हो,
दिन बन के बार गुज़रे न, ऐसी नजात हो.

हाथों की इन लकीरों पे, मत मारिए छड़ी,
उस्ताद मोहतरम, ज़रा शेफ्क़त का हाथ हो.

यह कशमकश सी क्यूं है, बग़ावत के साथ साथ,
पूरी तरह से देव से छूटो, तो बात हो.

कुछ तर्क गर करें तो सुकून व् क़रार है,
ख़ुद नापिए कि आप की, कैसी बिसात हो.

उंगली से छू रहे हैं, तसव्वर की माह व् रू,
मूसा की गुफ़्तुगु में, ख़ुदाया सबात4 हो.

इक गोली मौत की मिले 'मुंकिर' हलाल की,
गर रिज़्क1 का ज़रीया2 मदद हो, ज़कात3 हो.

१-भरण-पोषण २-साधन ३-दान 4 तत्व 

محرومیاں ستائیں نہ، نیندوں کی رات ہو 
دن بار بن کے گزرے نہ ایسی نجات ہو٠ 

ہاتھوں کی ان لکیروں پہ، مت مارئے چھڑی، 
استادِ محترم زرہ شفقت کا ہاتھ ہو٠ 

یہ کشمکش سی کیوں ہے، بغاوت کے ساتھ ساتھ؟ 
پوری طرح سے دیو سے چھوٹو تو بات ہو٠ 

کچھ ترک گر کریں، تو سکون و قرار ہے 
خود ناپئے کہ آپ کی کیسی بساط ہو٠ 

اُنگلی سے چھو رہے ہیں، تصوّر کی وہ پری 
موسیٰ کی گُفتگو میں خدایا ثبات ہو. 

اک گولی موت کی کما منکر حلال کی 
گر رزق کا زریعہ مدد ہو، زکات ہو٠ 

Friday, June 28, 2019

जुंबिशें दोहे


दोहे 

तन सिंचित मोती जड़ित , मन मोहन मुस्कान ,
है सृजित शोभा गणित , अल्ला तेरी शान .

تن سنچت ، موتی جڑت ، من موہن مسکان  
ہے سرجت شوبھا گڑت ، اللہ تیری شان ٠ 
**
उपदेशों से न बनी , लाए ईश आदेश ,
शक्ति को भगती मिले , बने जो अध्यादेश .

اپدیشوں سے نا بنی ،لایں ایش آدیش 
شکتی کو بھکتی میل ، بنے جو ادھیا دیش ٠
***
दावत हक की लाएं हैं , खिला रहे हैं भूख ,
इनके उनके फ़िक्र में, खुद भी गए हैं सूख .

دعوت حق کی لاۓ ہیں ، کھلا رہے ہیں بھوک 
انکی انکی فکر میں خود بھی گئے ہیں سوکھ 
****
खोले अपना डाक घर , बैठा उपर खुदाए ,
ख़त ले आया डाकिया , मार मार पढवाए .

کھولے اپنا ڈاک گھر، بیٹھا اوپر خداۓ 
خط لے آیا ڈاکیہ ، مار مار پڑھواے ٠
*****
आ देखे शमशान को या फिर कब्रिस्तान ,
जीवन की सच्चाई चुन , ऐ भोले नादान .

آ دیکھیں شمشان کو یا پھر قبرستان 
جیون کی سچچائی چن ، ائے بھولے نادان 

Thursday, June 27, 2019

मुस्कुराहटें


मुस्कुराहटें 
टक्कर 

था तबअ1 आज़ाद दहकाँ2, शेख़ ए बातिल3 का था वाज़4,
मैं उसे सौ ऊँट दूंगा, जो पढ़े सौ दिन नमाज़.
पा के लालच ऊँट का, दहकाँ वह राज़ी हो गया,
गोया अगले रोज़ से, पाजी नमाज़ी हो गया.

सौ दिनों के वाद आए शेख़ जब उसके यहाँ,
बोले बेटा पास मेरे ऊँट और घोडे कहाँ,
तुझको कर देना नमाज़ी, बस मुझे दरकार था,
राह में मस्जिद के बस, तू ही खटकता ख़ार था.
शेख़ की वादा ख़िलाफ़ी पर था उसका ये जवाब,
बे वज़ू5 के मैंने भी, टक्कर लगाए हैं जनाब.

1 स्वतंत्र स्वभाव 2 किसान 3 झूठा मोलवी 4 संबोधन 5 शरीर शुद्ध करना 

ٹکّر 
تھا طبع آزاد دہقان ، شیخ باطل کا تھا واعظ 
"میں اسے سو اونٹ دونگا ، جو پڑھے سو دن نماز"  
کر کے لالچ اونٹوں کا، وہ شخص راضی ہو گیا
گویہ اگلے دن سے، وہ پاجی نمازی ہو گیا ٠

  سو دنوں کے بعد آئے، شیخ جب اسکے یہاں 
بولے بیٹا پاس میرے، اونٹ اور گھوڑے کہاں ٠ 
تجھ کو کر دینا نمازی، بس مجھے درکار تھا 
راہ میں مسجد کے اک، تو ہی کھٹکتا خار تھا ٠ 
شیخ کی وعدہ خلافی پر، یہ اسکا تھا جواب  
بے وضو کے میں نے بھی ، ٹکّر لگاۓ ہیں جناب ٠ 

Wednesday, June 26, 2019

क़तआत ٠जू,जुंबिशें


क़तआत
कसौटी 

ईमान को पाया है या ईमान लिया है?
मनवाया गया है कि इसे मान लिया है.
फटका है? पछोरा है? इसे छान लिया है?
लोगों के गढ़े देव को पहचान लिया है?

ایمان کی کسوٹی

ایمان کو پایا ہے ، یا ایمان لیا ہے
منوایا گیا ہے ، کہ اسے ماں لیا ہے 
پھٹکا ہے ؟ پچوڑا ہے ؟ اسے چھان لیا ہے؟
کس طرح گڑھے دیو کو پہچان لیا ہے ؟ ؟


पसीने  फूल 

हल पेट की गुत्थी थी, दहकाँ की बदौलत,
तन सर की मुहाफ़िज़ है, ये मज़दूर की मेहनत, 
दीवारों में लिपटी हुई आरिफ़ की दुआएँ,
है ताक़ पे अटकी हुई, आबिद की इबादत.
मुहाफ़िज़=संरक्षक , आरिफ़=आत्म ज्ञानी ,आबिद=उपासक 

پسینے کے پھول

عابد کی عبادت تھی کسی طاق میں اٹکی 
عارف کی دعا یں رہی ، دیوار میں چپکی 
دہقاں کی مشققت نے غذا پیٹ کو دی ہے
مزدور کی محنت نے تن و سر کی خبر لی ٠ 

दुआए ख़ैर 

ये ज़ातयाती फ़ितने, माहौलयाती सदमें,
ये दुश्मनी के नरगे़, ये नफ़रतों के रख़ने,
ऐ क़ूवत ए इरादी, इन से बचा के ले चल,
जब तक मेरी मुहिम में आफ़ाक़ियत न झलके.
ज़ातयाती=व्यक्ति गत ,क़ूवत ए इरादी=दृढ निश्चय  आफ़ाक़ियत=बुलंदी 

دعاءُ خیر 

یہ زاتیاتی سدمیں، ماحول یاتی فتنے 
یہ دُشمنی کے نرغے، یہ نفرتوں کے رخنے 
ائے قووتِ ارادی، ان سے بچا کے لے چل 
جب تک مری مُہم میں، آفاقیت نہ جھلکے٠   

Tuesday, June 25, 2019

जुंबिशें रुबाइयात


रुबाइयात

औलादें बड़ी हो गईं, अब उंगली छुड़ाएँ, 
हमने जो पढ़ाया है इन्हें, वो हमको पढ़ाएँ, 
हो जाएँ अलग इनकी नई दुन्या से, 
माँ बाप बचा कर रख्खें, अपना खाएँ.

اولادیں بڑی ہو گئیں ، اب اُنگلی چُھڑا یں 
ہم نے جو پڑھایا انہیں، وہ ہم کو پڑھا یں 
ہو جایں الگ انکی نئی دنیا سے 
ماں باپ بچا کر رکھیں ، اپنا کھا یں٠  


कुछ ज़ीने उरूजों के हैं, लोगो चढ़ लो,
रह जाओगे पीछे, जरा आगे बढ़ लो, 
चश्मा है अक़ीदत का उतारो इसको, 
मत उलटी किताबें पढ़ो, सीधी पढ़ लो.

کچھ زینے عُروجوں کے ہیں ، یارو چڑھ لو 
رہ جاؤگے پیچھے ، ذرہ آگے بڑھ لو
چشمہ ہے عقیدت کا ، اُتارو اس کو 
مت سیدھی پڑھو انکو ، اُلٹی پڑھ لو ٠ 


है मुक्ति का अनुमान, जनम अच्छा है,
जन्नत के है इमकान, भरम अच्छा है, 
कहते हैं सभी मेरा धरम अच्छा है,
आमाल हैं अच्छे, न करम अच्छा है. 

ہے مُکتی کا انُومان جنم اچھا ہے 
جنّت کے ہیں امکان ، بھرم اچھا ہے 
کہتے ہیں سبھی ، میرا دھرم اچھا ہے 
   اعمال ہیں اچھے ، نہ کرم اچھا ہے ٠ 

Sunday, June 23, 2019

जुंबिशें - नज़्में


दस्तक 

घूँघट तो उठा दे कभी, ऐ वहिदे मुतलक़1,
चिलमन पे खड़ा कब से हूँ, आमादए दस्तक.

बाज़ार तेरे ख़ैर की बरकत की लगी है,
अय्यार लगाए हैं दुकानें, जो ठगी है.

तुज्जार2 तेरी शक्लें हज़ारो बनाए हैं,
आपस में मुक़ाबिल भी हैं, तेवर चढ़ाए हैं.

अल्लाह बड़ा है, तू बड़ा है, तू बड़ा है,
शैतान है छोटा जो तेरे साथ खड़ा है.

कब तक यह फ़सानों की हवा छाई रहेगी,
माजी3  की सियासत की वबा छाई रहेगी.

सर पे है खड़ा वक़्त चढ़ाए हुए तेवर,
हो जाए न महशर4  से ही पहले कोई महशर.

अब सोच को बदलो भी क़दामत के पुजारी,
मुंकिर तभी संवरेगी ज़रा नस्ल तुम्हारी. 

१-एकेश्वर २- व्यापारी ३-भूत काल ४-प्रलय 

دستک

گھُونگھٹ تو اُٹھا دے کبھی تو واحدِ مُطلعق 
بے چین یقیں ، دید کے در پہ ہے، بہ شدّت ٠

بازار ترے خیر کی ، برکت کی لگی ہے
عیاّر لگاۓ ہیں دکانیں ، جو ٹھگی ہے ٠

تجاّر تیری شکلیں ہزاروں بناۓ  
آپس میں مقابل ہیں یہ ، تیور چرھاۓ ٠

الله بڑا ہے ، تو بڑا ہے ، تو بڑا ہے 
شیطان ہے چھوٹا جو مقابل میں کھڑا ہے ٠

کب تک یہ فسانے ، یہ ہوا چھائی رہیگی 
ماضی کی سیاست کی وبا چی رہیگی ٠

سر پہ ہے کھڑا وقت ، چرھاۓ ہوئے تیور 
ہو جاۓ نہ محشر سے ہی پہلے کوئی محشر ٠ 

Friday, June 21, 2019

जुंबिशें --- ग़ज़ल


ग़ज़ल 

मख़लूक़ ए ज़माने1 की ज़रूरत को समझ ले,
बेहतर है इबादत से, तिजारत को समझ ले.

ऐ मर्द ए जवान साल, तू अब सीख ले उड़ना,
माँ-बाप की मजबूर किफ़ालत२ को समझ ले.

हुजरे3 में मसाजिद के, अज़ीज़ों को मत पढ़ा,
ग़िलमा४ के तलब गारों की, ख़सलत को समझ ले.

बारातों, ज़नाज़ों के लिए, चाहिए इक भीड़,
नादाँ तबअ५ उनकी, सियासत को समझ ले.

मनवा के "उसे" अपने को मनवाएगा वह शेख़,
यह दूर कि कौड़ी है, नज़ाक़त को समझ ले.

'मुंकिर' हो फ़िदा ताकि बक़ा6 हाथ हो तेरे,
मशरूत7 वजूदों की, शहादत को समझ ले.

१-जन साधारण २ -पालन-पोषण ३-कमरों 
४-सेवक बालक ५-सरल-स्वभाव ६-स्थायित्व ७- सशर्त

مخلوقِ زمانہ کی، ضرورت کو سمجھ لے 
بہتر ہے تجارت کو، عبادت تو سمجھ لے٠ 

اے مرد جواں سال، تو اب سیکھ لے اڑ نا 
ماں باپ کی مجبور، کفالت کو سمجھ لے٠

حجرے میں مساجد کے، عزیزوں کوپڑھا مت 
غلمہ کی طلب گاروں کی، خصلت کو سمجھ لے٠

منوا کے 'اُسے'، اپنے کو منواے گا وہ شیخ 
یہ دور کی کوڑی ہے، نزاقت کو سمجھ لے٠ 

منکر ہو فنا، تاکہ بقا ہاتھ ہو تیرے 
مشروط وجودوں کی شہادت کو سمجھ لے٠

Thursday, June 20, 2019

जुंबिशें --- दोहे

दोहे 
हाथन का फैलाए के , दीनेह खीस निपोर ,
कुत्ता भी शरमात है , जब मंगत है कौर .

ہاتھن کو پھیلاۓ کے ، دینوہ کھیس نپور 
کتا بھی شرمات ہے ، جب مانگت ہے کور ٠
*

तन की अग्नि से लड़ें , दिन भर जोगी राज ,
सपने को दोषी कहें , रात में हो जब काज .

 تن کی اگنی سے لڑیں ، دن بھر یوگی راج 
سپنوں کو دوشی کہیں ، رات مرن جب ہو کاج ٠ 
*

खाते समय न बोलिए , मुल्ला जी फरमाएँ ,
पशुवन की ये विधि भली , मानव भी अपनाएँ .

کھاتے سمے نہ بولئے ، ملا جی فرمایں 
پشون کی یہ ودھی بھلی ، مانو بھی اپنایں ٠


श्रद्धेय जी का हुक्म है , श्रोता गण जब आएँ ,
जूता छाता बुद्धि को , बाहर ही रख आएँ .

مہاراج کا حکم ہے ، شروتا گن جب آئین 
جوتا ، چھاتا ، بددھی کو بہار ہی رکھ آئین ٠
*


सब से मुंकिर राखियो , जय सिया राम सलाम ,
भिड जाए जब चूतिया , मुंह पर लगे लगाम .

سب سے 'منکر' راکھیو ، جے جے رام سلام 
کبھی نہ کیجیو چوٹیوں سے، لاجک بھرا کلام ٠ 

Wednesday, June 19, 2019

क़तआत ٠

क़तआत 
ठूंठ 

बातिल की बाग़ में हूँ किसी ठूंठ की तरह,
हर सांस पी रहा हूँ कड़े घूँट की तरह,
लादे हुए हूँ पीठ पर, सच्चाइयों का बोझ,
वीरान दश्त में हूँ , थके  ऊँट की तरह.
बातिल=मिथ्य ,दश्त=जंगल 

ٹھونٹھ
باطل کی باغ میں ہوں ، کسی ٹھونٹھ کی طرح 
ہر سانس پی رہا ہوں ، کڑے گھونٹ کی طرح،
لادے ہوئے ہوں پیٹھ پر ، سچائیوں کا بوج
ویران میں آ گیا ہوں ، کسی اونٹ کی طرح ٠

ओ सूरज 

लाखों बरस से किसके लिए जूझता है तू ,
गर्दिश के बंधनों से कभी ऊबता है तू ?,
ढो ढो के थक गया हूँ, ज़माने का बोझ मैं,
 सूरज मुझे बता, कि कहाँ डूबता है तू .

او سورج 
لاکھوں برس سے، کسکے لئے جوجھتا ہے تو 
گردش کے بندھنو سے، کبھی اوبتا ہے تو؟ 
ڈھو ڈھو کے تھک گیا ہوں زمانے کا بوجھ میں 
سورج مجھے بتا، کہ کہاں ڈوبتا ہے تو ؟


शर

कुछ लोग छोड़ते हैं मरने के बाद ज़र,
कुछ लोग छोड़ते हैं दीवार ओ दर का घर,
दीनो धरम के बानी फ़क़त छोड़ते हैं दिक़,
इंसानियत के हक में दीन ओ धरम का शर. 
शर=झगड़ा

وراثتیں 

کُچھ لوگ چھوڑتے ہیں مرنے کے بعد زر 
کچھ لوگ چھوڑتے ہیں دیوار و در کا گھر 
کیسی وراثتیں ہیں ان پیر و پیامبر کی 
انسانیت کے حق میں دین و دھرم کا شر٠ 

Monday, June 17, 2019

जुंबिशें -- रुबाइयात


रुबाइयात 
चाहे जिसे इज्ज़त दे, चाहे ज़िल्लत, 
चाहे जिसे ईमान दे, चाहे लअनत, 
समझाने बुझाने की मशक्क़त क्यों है? 
जब ख़ुद तेरे ताबे में है सारी हिकमत .

چاہے جِسے عزّت دے چاہے ذلّت 
چاہے جِسے ایمان دے چاہے لعنت 
سمجھقا نے بُجھانے کی مشقّت کیوں ہو 
جب خود ترے تعبے میں ہے ساری حِکمت ٠ 


जम्हूर में एहसास की पस्ती देखी, 
दौलत को अमीरों पे बरसती देखी,
दानों को तरसती हुई बस्ती देखी,
अ.फ्लास के साथ, मौज और मस्ती देखी.

جمہور میں احساس کی ، پستی دیکھی 
 دولت کو امیروں پہ،  برستی دیکھی 
دانوں کو ترستی ہوئی ، بستی دیکھی 
افلاس کے ساتھ ، موج اور مستی دیکھی ٠ 

जब गुज़रे हवादिस तो तलाशे है दिमाग, 
तब मय की परी हमको दिखाती चराग़, 
रुक जाती है वजूद में बपा जंग, 
फूल बन कर खिल जाते हैं दिल के सब दाग़. 

جب گزرے حوادث کو تلاشے یہ دماغ 
تب  مے کی پری ہم کو دِکھاۓ ہے چراغ 
رّک جاتی ہے وجود میں بپا جنگ 
پھول بن کر کِھل جاتے ہیں دل کے سب داغ ٠ 

Sunday, June 16, 2019

जुंबिशें - नज़्म --- अपील

 नज़्म

अपील

लिपटे-लिपटे सदियाँ गुज़रीं, वहेम् की इन मीनारों से,
मन्दिर, मस्जिद, गिरजा, मठ और दरबारी दीवारों से,
अन्याई उपदेशों से, और कपट भरे उपचारों से,
दोज़ख़, जन्नत की कल्पित, इन अंगारों,उपहारों से.

बहुत अनोखा जीवन है ये, इन पर मत बरबाद करो,
माज़ी के हैं मुर्दे ये सब, इनको मुर्दाबाद करो,
इनका मंतर उनका छू, निज भाषा में अनुवाद करो.
निजता का काबा काशी, निज चिंतन में आबाद करो.



اپیل

لِپٹے لِپٹے صدیاں گزریں، وهم کی ان دیواروں سے، 
مندر مسجد گرجا مٹھہ ، اور درباری دیواروں سے، 
اننیائی اُوپدیشوں سے اورکپٹ بھرے اُپچا روں سے،
دوزخ جنّت کی کلپیت ، انگاروں اُپہا روں سے٠   


بہت انوکھا جیون ہے یہ ، اِسکو مت برباد کرو،
ماضی کے مُردے ہیں یہ سب ، اِن کو مُردہ باد کرو، 
اِنکا منتر، اُنکا چهو ، نِج بھاشا میں انواد کرو٠ 
نِجتا کا کعبہ کاشی ، نِج چیتن میں آباد کرو٠ 
12

Friday, June 14, 2019

जुंबिशें -- ग़ज़ल

 ग़ज़ल
इस ज़मीं के वास्ते, मिल कर दुआ बन जाएँ हम,
रह गुज़र इंसानियत हो, क़ाफ़िला बन जाएँ हम.

क्यों किसी नाहक़ की, मरज़ी की रज़ा बन जाएँ हम, 
मुख़्तसर सी ज़िंदगी का, हादसा बन जाएँ हम.                                          

रद कर दो रहनुमाई की, ये नाहक़ रस्म को,
हो न क़ायद कोई अपना, क़ायदा बन जाएँ हम.

तुम ज़रा सी ज़िद को छोडो, हम ज़रा सी आन को.
क्या से क्या बन जाए ये घर, क्या से क्या बन जाएँ हम. 

अब महा भारत न उपजे, न फ़साद ए करबला,
शर के बुत को तोड़ कर, अमनी फ़िज़ा बन जाएँ हम. 

आख़िरी ज़ीने पे चढ़ कर, राज़ हस्ती का खुला,
इन्तेहा है क़र्ब मुंकिर, इब्तिदा बन जाएँ हम.


اس زمیں کے واسطے مل کر دعا بن جائیں ہم 
رہگزرانسانیت ہو، قافله بن جائیں ہم٠ 

کیوں کسی نا حق کی مرضی کی رضا بن جائیں ہم 
مختصر سی زندگی کا، حادثہ بن جائیں ہم٠

رد کر دو رہنمائی کی، یہ ناقص رسم کو، 
ہو نہ قاعد کوئی اپنا، قاعدہ بن جائیں ہم٠

تم ذرہ سی ضد کو چھوڑو، ہم ذرہ سی آن کو 
کیا سے کیا ہو جاۓ یہ گھر، کیا سے کیا ہو جائیں ہم٠ 

اب مہا بھارت نہ اُپجے، نہ فسادِ کربلہ 
شر کے بُت کو توڑ کر، امنی فضا بن جائیں ہم٠ 

آخری زینے پہ چڑھ کر راز ہستی کا کھلا 
انتہا ہے قرب منکر، ابتدا بن جائیں ہم٠