Thursday, April 26, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 41



41

पश्चिम हँसा है पूर्वी, कल्चर को देख कर,
हम जिस तरह से हंसते हैं, बंदर को देख कर.

चेहरे पे नातवाँ के, पटख देते हैं क़ुरआन ,
रख देते हैं क़ुरआन, तवंगर को देख कर.

फिर मादर ए वतन कभी जम कर करेगी रक्स , 
तारीख़ के सफ़े पे किसी नर को देख कर.

धरती का जिल्दी रोग है, इन्सान का ये सर,
फ़ितरत पनाह मांगे है, इस सर को देख कर.

यकता है वह, जो सूरत बातिन में है शुजअ,
डरता नहीं है ज़ाहिरी, लश्कर को देख कर.

झुकना न पड़ा, क़द के मुताबिक हैं तेरे दर,
मुंकिर का दिल है शाद तेरे घर को देख कर.

नातवां=कमज़ोर *तवंगर= ताक़तवर *फ़ितरत=पराकृति 
* बातिन=आंतरिक रूप में *शुजअ=बहादुर

***

،پچّھم ہنسا ہے، پوربی کلچر کو دیکھ کر 
ہم جس طرح سے ہنتے ہیں، بندر کو دیکھ کر٠ 

،چہرے پہ نا تواں کے، پٹخ دیتے ہیں قران  
رکھ دیتے ہیں قران ، تونگر کو دیکھ کر٠ 

، یکتا ہے وہ ، جو صورتِ باطن میں ہے شجاع   
ڈرتا نہیں وہ ظاھری لشکر کو دیکھ کر٠ 

،دھرتی کا جلدی روگ ہے، انسان کا یہ سر
فطرت پناہ مانگے ہے، اس سر کو دیکھ کر٠ 

،پھر مادرِ وطن کبھی، جم کر کریگی رقص 
تاریخ کے ورق پہ، کسی نر کو دیکھ کر٠ 

،جھکنا پڑا نہ، قد کے مطابق تھے تیرےدر 
منکر کا دل ہے شاد ، ترے گھر کو دیکھ کر٠  

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