Tuesday, April 10, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 25



25

ज़ाहिद में तेरी राग में, हरगिज़ न गाऊँगा,
हल्का सा अपना साज़, अलग ही बनाऊँगा.

तू मेरे हल हथौडे को, मस्जिद में लेके चल,
तेरे ख़ुदा को अपनी, नमाज़ें दिखाऊँगा.

सोहबत भिखारियों की, अगर छोड़ के तू आ,
मेहनत की पाक साफ़ गिज़ा, मैं खिलाऊँगा.

तुम खोल क्यूँ चढ़ाए हो, मानव स्वरूप के,
हो जाओ वस्त्र हीन, मैं आखें चुराऊँगा.

ए ईद! तू लिए है खड़ी, इक नमाज़ ए बेश,
इस बार छटी बार मैं, पढ़ने न जाऊँगा.

ख़ामोश हुवा, चौदह सौ सालों से ख़ुदा क्यूँ,
अब उस की ज़बाँ, हुस्न ए सदाक़त पे लाऊँगा.


،زاہد میں تیری را گ میں ہرگز نہ گاونگا 
ہلکا سا اپنا ساز الگ ہی بناونگا٠ 

،تو میرے ہل ہتھوڑے کو مسجد میں لیکے چل 
تیرے خدا کو اپنی نمازیں دکھا ونگا٠ 

،صحبت مخیّروں کی اگر چھوڑ کے تو آ
محنت کی پاک صاف غذا میں کھلاؤنگا٠ 

،تم خول کیوں چڑھای ہو اخلاقیات کے 
ہو جاؤ برہنہ ہی، میں آنکھیں چُراؤنگا٠ 

،ائے عید تو لئے ہے کھڑی اک نمازِ بیش 
اس بار چھٹویں بار میں پڑھنے نہ جاؤنگا٠ 

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