Sunday, April 8, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 23



23

बात नाज़ेबा तुम्हारे मुंह की, पहुंची यार तक,
अब न ले कर जाओ इसको, मानी व्  मेयार1 तक.

पहले आ कर ख़ुद में ठहरो, फिर ज़रा आगे बढ़ो,
ऊंचे, नीचे रास्तों से, ख़ित्तए हमवार2 तक.

घुल चुकी है हुक्म बरदारी, तुम्हारे ख़ून में,
मिट चुके हैं ख़ुद सरी, ख़ुद्दारी के आसार तक.

इक इलाजे बे दवा अल्फ़ाज़ की तासीर है,
कोई पहुंचा दे मरीज़ ए दिल के, गहरे ग़ार तक.

रब्त में अपने, रियाकारी की आमेज़िश लिए,
पुरसाँ हाली3 में चले आए हो इस बीमार तक.

मैं तेरे दौलत कदे की, सीढ़ियों तक आऊँ तो,
तू मुझे ले जाएगा, अपनी चुनी मीनार तक.

कुछ इमारत की तबाही, पर है मातम की फ़ज़ा,
हीरो शीमा नागा शाकी, शहर थे यलग़ार तक.

उम्र भर लूटेंगे तुझ को, मज़हबी गुंडे हैं ये,
फ़ासला बेहतर है इनसे, आलम ए बेदार तक.

1-अर्थ और स्तर 2 सम्थल 3 कुशल क्षेम

،بات نا زیبہ تمہارے منہہ کی، پہنچی یار تک 
اب نہ لیکر جاؤ اسکو، معنی و معیار تک٠ 

،پہلے آکر خود میں ٹھہرو، پھر ذرہ آگے بڑھو 
اونچے نیچے راستوں سے، خطّہء ہموار تک٠ 

،گُھل چکی ہے حُکم برداری تمہارے خون میں 
مٹ چکے ہیں نقشِ خودداری کے سب آثار تک٠ 

،اک علاجِ بے دوا، الفاظ کی تاثیر ہے 
کوئی پہنچا دے مریضِ دل کے گہرے غار تک٠ 

،ربط میں اپنے، ریا کاری کی آمیزش لئے 
پُرساں حالی میں چلے آے ہو اس بیمار تک٠ 

،میں ترے دولت کدے کی سیڑھیوں تک آوں تو 
تو مجھے لے جاۓ گا، اپنی چنی مینار تک٠ 

،کُچھ امارت کی تباھی پر ہے ماتم کی فضا 
ہیرو شیما، ناگا ساکی، شہر تھے یلغار تک٠ 

،عُمر بھر لوٹیںگے تُجھ کو، مذہبی غُنڈے ہیں یہ 
فاصلہ بہتر ہے ان سے، عالمِ بیدار تک٠ 

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