Saturday, June 30, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 101 याद ए माज़ी को तो, बेहतर है भुलाए रखिए,



101

याद ए माज़ी को तो, बेहतर है भुलाए रखिए,
हाल शीशे का है, पत्थर से बचाए रखिए.

दोस्ती, यारी, नज़रियात, मज़ाहिब, हालात,
ज़ेहन व् दिल पे, न बहानों को बिठाए रखिए.

मैं फ़िदा आप पे कैसे, जो बराबर हैं सभी,
ऐ मसावाती मुजाहिद! मुझे पाए रखिए.

सात पुश्तों से ख़ज़ाना, ये चला आया है,
सात पुश्तों के लिए माँ, इसे ताए रखिए.

आबला पाई भुला बैठी है, राहें सारी,
आप कुछ रोज़, चरागों को बुझाए रखिए.

सच की किरनों से, जहाँ में, लगे न आग कहीं,
आतिशे दिल अभी 'मुंकिर' ये बुझाए रखिए.

***

،یادِ ماضی کو تو بہتر ہے بُھلاے رکھئے 
حال شیشے کا ہے، پتھر سے بچاۓ رکھئے٠

،دوستی، یاری، نظریات، مذاھب، حالات 
ذہن و دل پر نہ گواہوں کو بٹھاۓ رکھئے٠

،میں فدا آپ پر کیسے، جو برابر ہیں سبھی 
ائے مساواتی مجاہد، مجھے پایے رکھئے٠ 

،سات پشتوں کا خزانہ یہ چلا آیا ہے 
سات پشتوں کے لئے ماں، اسے تائے رکھئے٠

،آبلہ پائی بھلا بیٹھی ہے را ہیں ساری
آپ کچھ روز چراغوں کو بُجھاۓ رکھئے٠

،سچ کی کرنوں سے جہاں میں نہ لگے آگ کہیں 
آتشِ دل ابھی منکر، یہ دباۓ رکھئے٠ 

Friday, June 29, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 100 आगही सो गई है डेरे में


100

आगही सो गई है डेरे में,
है वह नागाह सौ के फेरे में.    

थक गया करवटों से महलों की,
आओ मिल कर जिएँ बसेरे में,

ज़ायक़ा कुछ क़िनअत4 का चक्खें,         
क्या धरा है हवस के ढेरे में.

ऐ मुआलिज1 इलाज कर अपना,
मुब्तिला तू है ज़र के फेरे में.

एक बूढ़े के आँख में आँसू ,
आग लग जाएगी जज़ीरे में.

 लअनतें बे असर हुईं वाइज़2 ,
है ये 'मुंकिर' जज़ा3 के घेरे में. 

1 हकीम 2 मुल्ला 3 इनआम 4 संतोष 

،آگہی سو گئی ہے ڈیرے میں 
ہے وہ ناگاہ سو کے پھیرے میں٠  

،تھک گیا کروٹوں سے محلوں کی 
آو مل کر جئیں بسیرے میں٠  

،ذائقہ کچھ چکھیں قناعت کی  
کیا دھرا ہے ہوس کے ڈھیرے میں٠  

،اے معالج علاج کر اپنا 
مبتلا تو ہے زر کے پھیرے میں٠  

،ایک بوڑھے کی آنکھ میں آنسو 
آگ لگ جاۓگی جزیرے میں٠  

،لعنتیں بے اثر ہوئیں وائظ 
ہے یہ منکر جزا کے گھیرے میں٠   

Thursday, June 28, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 99 उन की मुट्ठी में कभी, मेरे पर आते नहीं ,


99

उन की मुट्ठी में कभी, मेरे पर आते नहीं,
हम पे पीर ए ख़ुद नुमाँ, के असर आते नहीं.

है तग़य्युर जुर्म तुम, ये सबक़ पढ़ते रहो,
राह में अपने ये, ज़ेरो ज़बर आते नहीं.

है लताफ़त जिंस में, इससे वह बचते हैं क्यूं,
यह ब्रहमचारी हैं क्या? ग़ौर  फ़रमाते नहीं.

आज दीवाना तो बस, इस लिए दीवाना है,
छेड़ने वाले उसे क्यूँ ,नज़र आते नहीं.

मेरे मुजरिम यूँ भुला बैठे हैं, अपने जुर्म को,
सामने आ जाते हैं, अब वह कतराते नहीं.

***

،مجھ پہ پیرِ خود نُما کے اثر آتے نہیں 
اِنکی مٹّھی میں کبھی، میرے پر آتے نہیں٠ 

،ہے تغیّر جرم، تم یہ سبق پڑھتے رہو
راہ میں اپنے، یہ زیر و زبر آتے نہیں٠ 

،ہے لطافت جنس میں، اس سے وہ  بچتے ہیں کیوں 
یہ برھم چاری ہیں کیا، غور فرماتے نہیں٠ 

،آج دیوانہ تو بس، اس لئے دیوانہ ہے
چھیڑنے والے، اسے کیوں نظر آتے نہیں٠ 

،میرے مجرم یوں بُھلا بیٹھے ہیں اپنے جرم کو 
سامنے آ جاتے ہیں، اب وہ کتراتے نہیں٠ 

Wednesday, June 27, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 98 आओ चलें बहार में, बैठे हैं इंतज़ार में ,


98

आओ चलें बहार में, बैठे हैं इंतज़ार में ,
रस्म ए कुहन इजाज़तें, डूबी हुई हैं ग़ार में .

माना कि आप हैं हसीं, माना जवान साल हैं ,
मैं भी खड़ा हूँ देर से, आ जाइए क़तार में ,

लिख्खे हुए वरक़ पे जो, छीटें ज़रा सी पड़ गईं ,
माने सभी बदल गए, देखिए चश्म ए यार में . 

उनको जिहद की दाद दो, जिनको ख़ुदा ने सब दिया ,
उनके लिए ख़ुदाई है, उनके ही अख़्तियार में .

नेक अमल इबादतें, उज्र ओ जज़ा के वास्ते ,
अपने तईं वह कर चुका, बैठा है इंतज़ार में . 

सोने दे अब अना को तू, थक सी गईं हैं ये जुनैद,
राह ए फ़रार तू भी ले, ख़तरा है इक़्तेदार में .

उज्र ओ जज़ा =बदला 

،آؤ چلیں بہار میں ، بیٹھے ہیں انتظار میں 
رسم کہن اجازتیں ، ڈوبی ہی ہیں غار میں٠ 

،مانا کہ آپ ہیں حسیں ، مانا جوان سال ہیں 
میں بھی کھڑا ہوں دیر سے، آ جائیے قطار میں٠ 

،لکھکھے ہوئے ورق پہ جو ، چھیٹیں ذرا سی پڑ گیں 
معنی سبھی بدل گے ، دیکھئے چشم یار میں٠ 

،انکی جہد کی داد دو ، جنکو خدا نے سب دیا 
انکے لئے  خدائی ہے ، انکے ہی اختیار میں٠ 

،نیک عمل ، عبادتیں ، اجر و جزا کے واسطے 
اپنے تئیں وہ کر چکا ، بیٹھا ہے انتظار میں٠ 

،سونے دے اب انا کو تو ، تھک سی گئی ہیں یہ جنید 
راہ فرار تو بھی لے ، خطرہ ہے اقتدار میں٠ .

Tuesday, June 26, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 97 तारीक़यों१ से पहले, सरे शाम चाहिए,


97

तारीक़यों से पहले, सरे शाम चाहिए,
हर सुब्ह आगही से भरा, जाम चाहिए.

अब जशन ए हुर्रियत को फ़रामोश भी करो,
आज़ादी ऐ मुआश3 का पैग़ाम चाहिए.

हंसिया हथौडा छोड़ के, चाक़ू उठा लिया,
मेहनत कशों के हाथों को, कुछ काम चाहिए.

मैं भी दबाए बैठा था, मुद्दत से उसके ऐब,
उस को भी एक ज़िद थी, कि इलज़ाम चाहिये.

कानो में रूई डाल के, बैठा है वह अमीन,
कुछ शोर चाहिए, ज़रा कोहराम चाहिए.

जद्दो जेहाद में, जाने जवानी कहाँ गई,
'मुंकिर' को बाक़ियात में आराम चाहिए.

१- अधकार २ -स्वतंत्रता दिवस ३-जीविका


،تاریکیوں سے پہلے سرے شام چاہئے 
ہر روز آگہی سے بھرا جام چاہئے ٠ 

،اب جشنِ حرریت کو فراموش بھی کرو 
گھر بار اور معاش کا پیغام چاہئے 

،ہنسیا ہتھوڑا چھوڑ کے چاقو اٹھا لئے 
محنت کشوں کے ہاتھ کو کچھ کام کہئے ٠ 

،میں بھی دباۓ بیٹھا تھا مدّت سے ان کے عیب 
اُنکو بھی ایک ضِد تھی کہ الزام چاہئے ٠ 

،کانوں میں روئی ڈال کے سویا ہے وہ امین 
کچھ شور چاہئے، ذرا کہرام چاہئے ٠ 

،جددو جہد میں جانے جوانی کہاں گئی 
منکر کو باقیات میں آرام چاہئے ٠ 

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 96 क़हर व् ग़ज़ब के डर से सिहरने लगे हैं वह,


96

क़हर व् ग़ज़ब के डर से सिहरने लगे हैं वह,
ख़ुद अपनी बाज़ ए गश्त1 से डरने लगे हैं वह.

गर्दानते2 हैं शोख़ अदाओं को वह गुनाह,
संजीदगी की घास को चरने लगे हैं वह.

रूहानी पेशवा हैं, या ख़ुद मरीज़ ए रूह,
पैदा नहीं हुए थे कि मरने लगे हैं वह.

हैं इस लिए ख़फ़ा, मैं कभी नापता नहीं,
वह काम नेक, जिनको कि करने लगे हैं वह.

ख़ुद अपनी जलवा गाह की पामालियों के बाद,
हर आईने पे रुक के सँवारने लगे हैं वह.

'मुंकिर' ने फेंके टुकड़े, ख़यालों के उनके गिर्द,
माक़ूलियत को पा के, ठहरने लगे हैं वह.

1 प्रति ध्वनी 2 शुमार करना 

،قہر و غضب کے ڈر سے سِہرنے لگے ہیں وہ 
خود اپنی بازِ گشت سے ڈرنے لگے ہیں وہ٠ 

،گردانتے ہیں شوخی کے لمحات کو گناہ 
سنجیدگی کی گھاس کو چرنے لگے ہیں وہ٠ 

،روحانی پیشوه ہیں کہ خود مریضِ روح  
پیدا نہیں ہوئے تھے کہ مرنے لگے ہیں وہ٠ 

،ہیں اس لئے خفا، میں کبھی ناپتا نہیں 
وہ کارِ خیر جِسکو کہ کرنے لگے ہیں وہ٠ 

،خود اپنے جلوہ گاہ کے پامالیوں کے بعد 
ہرآئینے پہ رُک کے سنورنے لگے ہیں وہ٠ 

،منکر نے پھنیکے ٹکڑے خیالوں کے انکے گرد 
معقولیت کو پاکے ٹھہرنے لگے ہے وہ٠ 

Friday, June 22, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 95 बहानो पर बहाना,


95

बहानो पर बहाना,
नया फिर इक फ़साना.

तवाज़ुन1 खो चुका हूँ,
न अब सर को उठाना.

तल्लुक़ मुन्क़ता2 हो,
नहीं मिलना मिलाना.

नहीं बर मिल सका था,
कि ऊंचा था घराना,

तहारत3 पर अडे हो,
न तुम हरगिज़ नहाना.

फ़लक  पर जा बसे हो,
लिखा था आब दाना.

बहुत बारीक सी हो,
ज़रा नज़दीक आना.

बहुत सीधा है 'मुंकिर',
न उसका दिल दुखाना.

१-संतुलन २-विच्छेद ३- पवित्रता

،بہانو پر بہانا 
بڑے جھوٹے ہو جا نا٠ 

،توازن کھو چُکا ہوں 
نہ پھر آنکھیں دِکھانا٠ 

،تعلق منقطع ہو 
نہیں ملنا ملانا ٠ 

،نہیں بَر مل سکا ہے 
کہ اونچا تھا گھرانہ٠ 

،طہارت پر اَڑے ہو 
نہ تُم ہرگز نہانا٠ 

 ،فلک پر جا بسے ہو
  لِکھا تھا آب دانہ٠ 

،بہت باریک سی ہو 
ذرہ نزدیک آنا٠ 

،بہت سیدھا ہے منکر
نہ اس کا دل دکھانا ٠  

Thursday, June 21, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 94 अब मेरी उस से बोल चाल नहीं,


94

अब मेरी उस से बोल चाल नहीं,
है सुकूं, कोई क़ील व् क़ाल नहीं . 

मेरी उस से अजब लड़ाई है, 
सर में तलवार, दिल में बाल नहीं . 

तेरी रिश्वत की तर बतर रोटी,
मैं भी खालूँ, कोई सवाल नहीं .

मैंने माना कि तेरा दीं है सही,
हाँ मगर आज हस्ब ए हाल नहीं .

तालिबान ए ख़ुदा न तोड़ो बुत, 
अपने पुरखों का कुछ ख़याल नहीं .

हद से करता नहीं तजाउज़ वह ,
कहाँ मुंकिर में एतदाल नहीं. 

क़ील ओ क़ाल -तक़रारें, तजाउज़=सीमा लांघना ,एतदाल=संतुलन  

،اب مری اُس سے بول چال نہیں
ہے سکوں ، کوئی قیل و قال نہیں٠  

،میری اُس سے عجب لڑائی ہے
سر میں تلوار، دل میں بال نہیں٠  

،تری رشوت کی تر بتر روٹی
میں بھی کھاؤں، کوئی سوال نہیں٠  

،میں نے مانا کہ تیرا دیں ہے صحیح
ہاں ! مگر آج حسبِ حال نہیں٠  

،طالبان خدا نہ توڑو بُت
تم کو پُرکھوں کا کچھ خیال نہیں٠  

،حد سے کرتا نہیں تجاوز وہ 
کہاں منکر میں اعتدال نہیں٠

Wednesday, June 20, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 93 आलम ए गुम की चीज़ होती है,



93

आलम ए गुम की चीज़ होती है,
जान कितनी अज़ीज़ होती है.

अच्छा शौहर ग़ुलाम होता है,
अच्छी बीवी कनीज़ होती है.

बात बिगड़े तो जाए रुसवाई,
बात बन कर तमीज़ होती है.

मुफ़्त का माल  खाने वालों की,
खाल कितनी दबीज़ होती है.

फ़िल्म बे दाग़ रहनुमाओं की ,
देखिए कब रिलीज़ होती है.

बे ख़याली में लम्स की बोटी,
हाय कितनी लज़ीज़ होती है.

*कनीज़=दासी * दबीज़=मोटी*लम्स=स्पर्श

،عالم گُم کی چیز ہوتی ہے 
جان کتنی عزیز ہوتی ہے٠ 

،اچھا شوہرغُلام ہوتا ہے
اچھی بیوی کنیز ہوتی ہے٠ 

،بات بگڑے تو جاے رُسوائی 
بات بن کر تمیز ہوتی ہے٠ 

،مُفت کا مال کھانے والوں کی
کھال کتنی دبیز ہوتی ہے٠ 

،فلم بے داغ رہنماؤں کی 
دیکھئے کب رلیز ہوتی ہے٠ 

،بے خیالی میں لمس کی بوٹی 
ہاۓ ! کتنی لذیز ہوتی ہے ٠ 

Tuesday, June 19, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 92 हक़ की बातें ही नहीं करते हैं,


92

हक़ की बातें ही नहीं करते हैं,
हक़ तलफ़ हों, तो बहुत डरते हैं . 

व.ज्न को ख़त्म किया दौलत ने,
पाँव धरती पे नहीं धरते हैं.

घर की दीवारें दरक जाएंगी,
बात धीमे से किया करते हैं.

सजती धजती हैं जतन से परियाँ,
ये है लाज़िम कि जवाँ मरते हैं.

जाम भरते हैं ख़ुद अपने सर में,
सर निज़ामों से मेरा भरते हैं.

एक मुंकिर के सिवा बाक़ी सब,
तेरे जन्नत की घास चरते हैं.

निजामों+उसूलों 


 ،حق کی باتیں ہی نہیں کرتے ہیں
حق تلف گر ہوں ، بہت ڈرتے ہیں٠  

،وزن کو ختم کیا دولت نے  
پانوں دھرتی پہ نہیں دھرتے ہیں٠  

،گھر کی دیواریں درک جاینگی
دھیمے دھیمے وہ بات کرتے ہیں٠  

،سجتی دھجتی ہیں جَتن سے پریاں
یہ ہے لازم کہ جواں مرتے ہیں٠  

،جام بھرتے ہیں خود اپنے سر میں
سر میں میرے نظام بھرتے ہیں٠  

،ایک منکر کے سوا باقی سب
تیری جنّت کی گھاس چرتے ہیں٠  

Monday, June 18, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 91 ये जम्हूरियत बे असर है,


91

ये जम्हूरियत बे असर है,
संवारे इसे, कोई नर है?

बहुत सोच कर ख़ुद कुशी कर,
किसी का तू , नूर ए नज़र है.

दिखा दे उसे क़ौमी दंगे,
सना ख़्वान मशरिक, किधर है.

बहुत कम है पहचान इसकी,
रिवाजों में डूबा बशर है.

है ऊपर न जन्नत, न दोज़ख,
ख़ला है, नफ़ी है, सिफ़र है.

इबादत है, रोज़ी, मशक़्क़त,
अज़ान ए कुहन, पुर ख़तर है.

ये सोना है, जगने की मोहलत,
जगो! ज़िन्दगी दांव पर है.

नहीं बन सका फ़र्द इन्साँ,
कहाँ पर ये बाक़ी कसर है ?

है तक़लीद बेजा ये 'मुंकिर',
तेरे जिस्म पर एक सर है.

*जम्हूरियत=गण-तन्त्र *नूरे नज़र=आँख का तारा * तकलीद=अनुसरण.
 *सना ख्वान मशरिक=पूरब का गुण-गण करने वाले*खला, नफ़ी=क्षितिज एवं शून्य 

،یہ جمہوریت بے اثر ہے 
سنوارے اسے کوئی نر ہے٠ 

،بہت سوچ کر خود کشی کر 
کسی کا تو نور نظر ہے٠ 

،دکھا دے اسے قومی دنگے 
ثنا خوانِ مشرق کدھر ہے٠ 

،بہت کم ہے پہچان اسکی 
رِواجوں میں ڈوبا بشر ہے٠ 

،نہیں بن سکا فرد انساں 
کہاں پر یہ باقی کثر ر ہے٠ 

،ہے اوپرنہ جنّت نہ دوزخ 
خلاء ہے، نفی ہے، صفر ہے٠ 

،عبادت ہے روزی مشقت 
اذان کُہن پر خطر ہے٠ 

،یہ سونا ہے جگنے کی مہلت 
جگو! زندگی دانو پر ہے٠ 

،ہے تقلید بے جہ یہ منکر 
ترے جسم پر ایک سر ہے٠ 

Sunday, June 17, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 90 मुतालेआ करे चेहरों का, चश्म ए नव ख़ेज़ी


90

मुतालेआ करे चेहरों का, चश्म ए नव ख़ेज़ी,
छलक न जाए कहीं, यह शराब ए लब्रेजी.

हलाकतों पे है माइल, निज़ाम ए चंगेजी,
तरस न जाए कहीं, आरज़ू ए खूँ रेज़ी .

अगर है नर तो, बसद फ़िक्र शेर पैदा कर,
मिसाले गाव, बुज़, ओ ख़र है तेरी ज़र ख़ेज़ी.

तू अपनी मस्त ख़ेरामी पे, नाज़ करती फिर,
तेरे ख़िलाफ़ हैं चिरकुट, जबान ए अंग्रेज़ी!

नए निज़ाम के जानिब क़दम उठा अपने,
ये ख़ात्मुन की सदा छोड़, ला ज़रा तेज़ी .

बचेगी मिल्लत ख़ुद बीं, की आबरू 'मुंकिर',
अगर मंज़ूर हों  मंसूर, शम्स ओ तबरेज़ी.

*मुतलेआ= अद्ध्य्यन *निजामे=व्योवस्था *गाव, बुज़, खर=भेडें,बकरियां,गधे 
*उपजता *मिल्लत खुद बीन =इशारा वर्ग विशेष की ओर

، مطالعہ کرے چہروں کی، چشم نَو خیزی
چھلک نہ جاۓ کہیں یہ شراب لبریزی٠ 

، حلاقتوں پہ ہے مائل، نظامِ چنگیزی 
ترس نہ جاۓ کہیں، آرزوء خوں ریزی٠ 

، اگر ہے نر، تو بصد فکر ، شیر پیدا کر
مثال گاؤ و بز و خر ہے، تیری زر خیزی٠ 

، تو اپنی مست خرامی پہ ناز کرتی پھر 
ترے خلاف ہیں چِرکُٹ، زبان انگریزی! 

، نۓ نظام کی جانب قدم اٹھا اپنے 
یہ خاتمُن کا وہم چھوڑ لا ذرہ تیزی٠ 

، بچیگی ملّتِ خود بیں کی آبرو منکر 
اگر قبول ہو ں منصور و شمس تبریزی٠ 

Saturday, June 16, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 89 जब तक रवा रखोगे, मेरे साथ तुम बुख़ालत


89

जब तक रवा रखोगे, मेरे साथ तुम बुख़ालत1,
तब तक न कर सकूँगा, मेरे यार मैं क़िनाअत2.

 बेदारियां ये कैसी? कि जिद्दत हैं सब हराम ,
बेहोशी ही भली थी, तेरा सोना ही ग़नीमत.

क़ुर्बानियों का जज़्बा, मज़ाहिब की तश्नगी3 है,
खूराक़ इनको भाए, वफ़ादारों की शहादत .

 लिपटा हुवा जवाँ है, मज़ारों के देवता से, 
शर्मिंदा जुस्तुजू है4, हमागोश5 है अक़ीदत.

मुमकिन नहीं की ख़ालिक़6, अगर हो तो मुन्तक़िम7 हो, 
होगा अगर जो होगा , माँ बाप की ही सूरत. 

मेरी तरह ही तुम भी, हटा लोगे बोझ दिल का,
क्या शय है फ़िक्र ए मुंकिर, ज़रा समझो इसकी क़ीमत. 

1 कंजूसी 2 संतोष 3 प्यास 4 तलाश 5 लिपटना 6 खुदा 7 प्रति घात

،جب تک روا رکھو گے، میرے ساتھ تم بُخا لت
تب تک نہ کر سکون گا، میرے یار میں قِناعت٠  

،بیداریاں یہ کیسی کہ ، کھنچتا ہے سمت ماضی
بے ہوشی ہی بھلی تھی، ترا سونا ہی غمیمت٠  

،قربانیوں کا جذبہ ، مذاہب کی تشنگی ہے
خوراق انکو بھاۓ، وفا داروں کی شہادت٠  

،لِپٹا ہوا جواں ہے، مزاروں کے دیوتا سے
شرمندہ جُستجو ہے، ہمّہ گوش ہے عقیدت٠  

،ممکن نہیں کہ خالق، اگر ہو تو منتقم ہو
ہوگا اگر جو ہوگا، ماں باپ کی ہی صورت٠  

،میری طرح ہی تم بھی، ہٹا لوگے بوجھ دل کا
کیا شے ہے فکرِ منکر ، ذرا سمجھو اسکی قیمت٠  

Friday, June 15, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 88 अपने घरों में, मंदिर ओ मस्जिद बनाइए


88

अपने घरों में, मंदिर ओ मस्जिद बनाइए,
अपने सरों पे, धर्म और मज़हब सजाइए.

उस सब्ज़ आसमान के, नीचे न जाइए,
इस भगुवा कायनात से, खुद को बचाइए.

सड़कों पे हो नमाज़, न फुटपाथ पर भजन,
जो रह गुज़र अवाम है, उस पर न छाइए.

बचिए ज़ियारतों से, दर्शन की दौड़ से,
थोडा स वक़्त बैठ के, ख़ुद में बिताइए.

परिक्रमा और तवाफ़ के हासिल पे ग़ौर हो,
मत ज़िन्दगी को नक़ली सफ़र में गंवाइए.

बच्चों का इम्तेहान है, बीमार घर पे हैं,
मीलाद ओ जागरण के ये भोपू हटाइए.

अरबों की सर ज़मीन है, जंगों से बद नुमा,
'मुंकिर' वतन की वादियों में घूम आइए.

***

،اپنے گھروں میں مندر و مسجد بنائے 
اپنے سروں پہ دھرم اور مذهب سجائے٠ 

،اس سبزآسمان کے نیچے نہ جائیے
اِس بھگوا کائنات سے خود کو بچائے٠ 

،سڑکوں پہ ہو نماز، نہ فٹ پاتھ پر بھجن 
جو رہگزرعوامی ہے، اس پر نہ چھائے٠ 

،بچئے زیارتوں سے، اور درشن کے رسم سے 
تھوڑا سا وقت بیٹھ کر، خود میں گزارئیے٠ 

،پریکّرمہ اور طواف کے حاصل پہ غور ہو 
مت زندگی کو نقلی سفر میں بتا ئیے٠ 

،عربوں کی سر زمین ہے جنگوں سے بد نما

 منکر وطنکی وادیوں میں گھوم آئیے ٠ 

،بچوں کے امتحان ہیں، بیمار گھر میں ہیں  
میلاد و جاگرن کے نہ بھونپو بجائیے٠ 

Thursday, June 14, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 87 जितना बड़ा है क़द तेरा, उतना अज़ीम है


87

जितना बड़ा है क़द तेरा, उतना अज़ीम है,
ऐ पेड़! तू भी राम है, तू भी रहीम है.

ईमान दार लोगों के, ज़ानों पे रख के सर,
बे खटके सो रहे हो, ये अक़्ल ए सलीम है.

तेरह दिलों की धड़कनें, तेरह दलों का बल,
जम्हूर का मरज़ ये, वबाल ए हकीम है.

अलक़ाब में आदाब के, अंबार मत लगा,
बालाए ताक़ कर इसे, क़द्रे ए क़दीम है.

खूं का लिखा हुवा, मेरा दिल में उतार लो,
ये आसमानी कुन, न अलिफ़,लाम, मीम है.

'मुंकिर' खिला रहा है, जो कडुई सी गोलियाँ,
इंकार की दवा है, ये तअसीर नीम है.

***

،جِتنا بڑا ہے قد ترا، اُتنا عظیم ہے 
اے پیڑ تو بھی رام ہے، تو بھی رحیم ہے٠ 

،ایمان دار لوگوں کے، زانو پہ رکھ کے سر 
بے کھٹکے سو رھے ہو، یہ عقلِ سلیم ہے٠ 

،تیرہ دلوں کی دھڑکنیں، تیرہ دلوں کا بل
جمہور کا مرض، یہ وبالِ حکیم ہے٠ 

،القاب میں آداب کے انبار مت لگا  
بالاۓ طاق کر اِسے، قدرِ قدیم ہے٠ 

،خوں سے لکھا ہوا مرا، دل میں اُتار لو 
یہ آئیں بائیں شائیں، نہ الف لام میم ہے٠ 

،منکر کِھلا رہا ہے جو کڑوی سی گولیاں 
اِنکار کی دوا ہے، یہ تاثیرِ نیم ہے٠ 

Wednesday, June 13, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 86 जहान ए अर्श का बन्दा है, बार ए अन्जुमन होगा


86

जहान ए अर्श का बन्दा है, बार ए अन्जुमन होगा,
मसाइल पेश कर देगा, नशा सारा हिरन होगा.

मुझे दो गज़ ज़मीन दे दे, अगर शमशान में अपने,
मज़ार ए यार पे अर्थी जले तेरी, मिलन होगा.

मिले हैं पेट पीठों से, तलाशी इनकी भी लेना,
कहीं कुछ अन्न मिल जाए, तो बाक़ी है हवन होगा.

वो जिस दिन से ग़लाज़त साफ़ करना बंद कर देगा,
कोई सय्यद न होगा, और न कोई बरहमन होगा.

अपीलें सेक्स करता हो, तो ऐसा हुस्न है बरतर,
अजब मेयार लेके हुस्न का, यह बांक पन होगा.

फ़्री के, गिफ्ट के, और मुफ़्त के, हमराह हैं सौदे,
ख़रीदो मौत गर 'मुंकिर' तो तोहफ़े में कफ़न होगा.

***

،جہانِ عرش کا بندہ ہے، بارِ انجمن ہوگا 
مسائل پیش کر دیگا ، نشہ سارا ہِرن ہوگا٠ 

،مجھے دو گز زمیں دیدے، اگر شمشان میں اپنے 
مزارِ یار پہ ارتھی جلے تیری، ملن ہوگا٠ 

،ملے ہیں پیٹ، پیٹھوں سے، تلاشی اُن کی بھی لینا 
کہیں کُچھ انّ مل جاۓ، تو باقی ہے ہَون ہوگا٠ 

،وہ جس دن سےغلاظت صاف کرنا بند کر دیگا 
کوئی سیّد نہ ہوگا اور نہ کوئی برہمن ہوگا٠ 

،اپیلیں سیکس کی کرتا ہو، ایسا حسن ہے برتر 
عجب معیار لے کے، حسن کا اب بانک پن ہوگا٠ 

،فری کے، گِفٹ کے اور مُفت کے، ہمراہ سودے ہیں
خریدو موت گر منکر، تو تحفے میں کفن ہوگا٠  

Tuesday, June 12, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 85 खुद से चुनी अज़ीयत,

85

खुद से चुनी अज़ीयत,
रोज़ा नफ़िल तहारत.

तामीर है नफ़ी में,
है इक जुनूं इबादत.

दो बीवी तेरह बच्चे,
अल्लाह तेरी रहमत.

सब्र ओ रज़ा का चेहरा,
दर पर्दा ए बुख़ालत.

बे तु.ख्म का बशर था,
सुबहान तेरी क़ुदरत.

इज्ज़त दे चाहे ज़िल्लत,
मल्हूज़ हो दयानत.

मशहूर हो रहा है,
मुंकिर बफ़ज़्ल  ए तोहमत. 

अज़ीयत=कष्ट , नमाज़ ,तहारत=पाकीजगी ,
बुख़ालत=कंजूसी तु.ख्म =वीर्य , मल्हूज़=लिहाज़ 

،خود سے چنی اذیّت 
روزہ ، نفل طہارت٠ 

،تعمیر ہے نفی میں 
ہے اک جُنوں عبادت٠ 

،دو بیوی تیرہ بچے 
الله تیری رحمت٠ 

،صبر و رضا کا چہرا 
در پردہ ہے بخالت٠ 

،مفلوج ہو گئے ہو
کیوں بھا گئی قناعت٠ 

بے تخم کا بشر تھا؟ 
سبحان تیری قدرت؟

،عزت دے چاہے ذلّت 
ملحوظ ہو دیانت٠ 

،مشہور ہو رہے ہیں 
منکر بفضلِ تہمت٠

Monday, June 11, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 84



84

आप वअदों की हरारत को, कहाँ जानते हैं.
हम जो रखते हैं, वह पत्थर की ज़ुबाँ जानते हैं.

पुरसाँ हालों को, बताते हुए मेरी हालत,
मुस्कुराते हैं, मेरा दर्द ए निहाँ जानते हैं.

क़ौम को थोडी ज़रुरत है, मसीहाई की,
आप तो बस कि फ़न ए तीर व् कमाँ जानते हैं.

नंगे सर, नंगे बदन, उनको चले आने दो,
वोह अभी जीने के, आदाब कहाँ जानते हैं.

नहीं मअलूम किसी को, कि कहाँ है लादेन,
सब को मअलूम है कि अल्लाह मियाँ जानते हैं.

ना तवानी की अज़ीयत में पड़े हैं 'मुंकिर',
है बहारों का ये अंजाम, खिज़ां जानते हैं.

*मसीहाई=मसीहाई*न तवानी=दुर्बलता* अज़ीयत=कष्ट

،آپ وعدوں کی حَرارت کو کہاں جانتے ہیں
ہم جو رکھتے ہیں، وہ پتّھر کی زبان جانتے ہیں٠ 

،پُرساں حالوں کو بتاتے ہوئے، میری حالت 
مُسکراتے ہیں، مرا دردِ نہاں جانتے ہیں٠ 

،قوم کو تھوڑی، ضرورت ہے مسیحائی کی 
آپ تو بس کہ فنِ تیر و کماں، جانتے ہیں٠ 

،ننگے سر، ننگے بدن، اُنکو چلے آنے دو
وہ ابھی جینے کے آداب، کہاں جانتے ہیں٠

،نہیں معلوم کسی کو، کہ کہاں ہے لادین 
سب کو معلوم ہے کہ الله میاں، جانتے ہیں٠

،ناتوانی کی اذیت میں، پڑے ہیں منکر 
ہے بہاروں کا یہ انجامِ خزاں، جانتے ہیں٠