Monday, April 23, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 38



38

इक लम्हा लग्ज़िसों का अज़ाब ए हयात है,
ग़लबा है इक ख़ला का, भरी कायनात है. 

पाबंदियों की सुर्ख़ लकीरें लिए हुए,
रातों को दिन कहें, तो कहें दिन को रात है.

बस है बहुत लतीफ़, हक़ीक़त को छोडि़ए,
इन झूटे तर्जुमों में, बला की बिसात है.

आइना तेरे दिल का, निगाहों में नस्ब है,
सुनने की बात, और न कहने की बात है. 

मुन्सिफ़ की मुजरिमो की, हम आगोश हैं जड़ें, 
इन्साफ़ मर चुका है, ये क़ौमी वफ़ात है. 

ऐ डाकुओ! तुम्हारे भी अपने उसूल हैं, 
हातिम को लूट लो, बड़ी नाज़ेबा बात है. 

***

،اک لمحہ زندگی کا، عذاب حیات ہے
غلبہ ہے، اک خلا ہے، بھری کائنات ہے٠  

،پابندیوں کی سرخ، لکیریں لئے ہوئے
راتوں کو دن کہیں ، تو کہیں دن کو رات ہے٠  

،بس ہیں بہت لطیف، حقیقت کو چھوڑئے
ان جھوٹے ترجُموں میں، بلا کی بسات ہے٠  

،آئینہ تیرے دل کا، نگاہوں میں نسب ہے
سننے کی بات ، اور نہ کہنے کی بات ہے٠  

،مُنصف کی مجرموں سے ہم آگوش ہے جڑیں
انصاف مر چکا ہے، یہ قومی وفات ہے٠  

،ائے ڈاکوو! تمہارے بھی، اپنے اصول تھے
حاتم کو لوٹ لو، بڑی نازیبہ بات ہے٠  

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