Friday, August 31, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 45 उन्नति शरणम् गच्छामि



45

उन्नति शरणम् गच्छामि

गौतम था बे नयाज़ ए अलम1, जब बड़ा हुवा,
महलों की ऐश गाह में, इक ख़ुद कुशी किया.
पैदा हुवा दोबारा, हक़ीक़त की कोख से,
तब इस जहाँ के क़र्ब2 से, वह आशना हुवा.

देखा ज़ईफ़3 को तो, हुवा ख़ुद नहीफ़4 वह,
रोगियों को देख के, बीमार हो गया.
मुर्दे को देख कर तो, वह मायूस यूँ हुवा,
महलों की ऐश गाह से, संन्यास ले लिया.

बीवी की चाहतों से, रुख अपना मोड़ कर,
मासूम नव निहाल को भी, तनहा छोड़ कर,
महलों के क़ैद ख़ानों से, पाता हुवा नजात,
जंगल में जन्म पाया था, जंगल को चल दिया.

असली ख़ुदा तलाश वह, करता रहा वहां,
कोई  ख़ुदा मिला न उसे, यह हुवा ज़रूर
वह इन्क़्शाफ़5 सब से बड़े, सच का कर गया,
"दिल में है अगर अम्न, तो समझो  ख़ुदा मिला".

सौ फ़ीसदी था सच, जो यहाँ तक गुज़र गया,
अफ़सोस का मुक़ाम है, जो इसके बाद है.

शहज़ादे के मुहिम की, शुरुआत यूँ हुई,
तन पोशी, घर, मुआश बतर्ज़े-गदा6 हुई.

दर अस्ल थी मुहिम, हो  ख़ुदाओं का सद्दे-बाब7,
मुहमे-अज़ीम8 थी, कि जो राहें भटक गई,
राहों में इस अज़ीम के, जनता निकल पड़ी,
उसने महेल को छोड़ा था, और इसने झोपड़ी.

शीराज़ा9 बाल बच्चों के, घर का बिखर गया,
आया शरण में इसके जो, वह भिक्षु बन गया.
मानव समाज कि धुरी, जो डगमगा गई.
मेहनत कशों पे और, क़ज़ा10 दूनी हो गई.

काहिल अमल फ़रार, ये हिन्दोस्तां हुवा,
जद्दो-जेहद का देवता, चरणों में जा बसा,
तामीर11 क़ौम के रुके, सदियाँ गुज़र गईं,
'मुंकिर' ख़ुमार बुत का ये, छाया है आज तक,

माज़ी गुज़र गया है, बुरा हाल है बशर.
आबादियों को खाना, न पानी है मयस्सर ,
ज़ेरे सतर ग़रीबी12, जिए जा रहे हैं हम,
बानी महात्मा की,  पिए जा रहे हैं हम.

१-दुःख से अज्ञान 2 -पीडा ३-बृध ४-कमज़ोर ५-उजागर करना ६-भिखारी की तरह जीवन यापन
 ७-समाप्त होना ८-महान ९-प्रबंधन १०-मौत ११-रचना १२-गरीबी रेखा

کٹورا شرنم گچھچھامی


،شہزادہ بے نیازِالم جب بڑا ہوا 
،محلوں کی عیش گاہ میں اک خود کشی کیا
،پیدا ہوا دوبارہ، حقیقت کی کوکھ سے 
تب اس جہاں کے قَرب سے وہ آشنا ہوا ٠

،دیکھا ضعیف کو تو ، ہوا خود نحیف وہ 
،بیماریوں کو دیکھ کے ، بیمار ہو گیا 
،مُردے کو دیکھ کر تو، وہ مایوس یوں ہوا 
محلوں کی عیش گاہ سے سنیاس لے لیا ٠ 

،بیوی کی توجہہ سے ، رخ اپنا موڑکے 
،معصوم نو نہال کو بھی تنہا چھوڑ کے 
،محلوں کے قید خانے سے لیتا ہوا نجات 
جنگل میں جنم پایا تھا ، جنگل کو چل دیا ٠

،اصلی خدا تلاش وہ کرتا رہا وہاں 
،کوئی خُدا شُدا نہ ملا ، یہ ہوا ضرور 
،وہ انکشاف سب سے بڑے سچ کا کر گیا 
دل میں اگر ہے سچ تو یہی ہے خدا کا نور٠

،سو فی صدی تھا حق ، جو یہاں تک گزر گیا
،افسوس کا مقام ہے ، جو اسکے بعد ہے 
،شہزادے کی مہم کی ، شروعات یوں ہی 
تن پوشی ، گھر،معاش ، بطرزِ گدا ہوئی ٠

،مبہم خدا کی ذات سے فارغ ہوا سماج 
،لیکن وہ کار سازی کی راہیں بھٹک گیا 
،را ہوں میں اس فقیر کے ، جنتا نکل پڑی 
اُس نے محل کو چھوڑا تھا اور اِسنے جھوپڑی ٠

،شیرازہ بال بچوں کے گھر کا بکھر گیا 
،آیا شرن میں اُسکے جو ، وہ بھکہچھو بن گیا 
،ڈھانچہ معاشرے کا کھڑا ، چرمرا گیا 
محنت کشوں پہ اور قضا دونی ہو گئی ٠ 

،کاحل ، عمل فرار ، یہ ہندوستاں ہوا 
،جد و جہد کا کارواں شرنوں میں جا بسا 
،تعمیر قوم کی رُکے صدیاں گزر گئیں
منکر خُمار بُت کا یہ چھایا ہے آج تک٠  

،ماضی بُرا رہا ہے ، بُرا حال ہے بشر 
،آبادیوں کو کھانا ، نہ پانی ہے پیٹ بھر 
،زیرِ غریبی سطر ، جئے جا رہے ہیں ہم 
بانی مہاتما کی پئے جا رہے ہیں ہم ٠ 

Thursday, August 30, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 44 कमसिन रहनुमा

44 

 कमसिन रहनुमा

कमसिन था रह नुमा, कि जवाँ साल मर गया,
अध् कचरे से उसूल, दिमागों में भर गया,
अब तक जिन्हें गले से, लगाए हुए हो तुम,
बोसीदगी1 से घर को, सजाए हुए हो तुम.
पूरी जो उम्र पाता, समझता वह भूल ख़ुद,
मतरूक2 करके जाता, वह अपने उसूल ख़ुद.
१-जीर्णता २-अप्रचलित

کم سن رھنما 

،کم سن تھا رہ نما کہ جوان سال مر گیا 
،ادھ کچرے سے اصول ، دماغوں میں بھر گیا 
،اب تک انھیں گلے سے ، لگاۓ ہوئے ہو تم 
،بوسیدگی سے گھر کو ، سجاۓ ہوئے ہو تم 
،پوری جو عمر پاتا سمجھتا وہ بھول خود 
متروک کر کے جاتا ، وہ اپنے اصول خود ٠

जुंबिशें - - - नज़्म 43 छीछा लेदर



43

छीछा लेदर

ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी,
भए न्याय के सब अधिकारी.
इन सब को अपराधी जान्यो,
सभै की मौन समाधि जान्यो.
निर्बल जीव को पापी संझयो,
ताड़क को परतापी समझयो.
इनके मूडे सींग उग आई,
इनके मार से कौन बचाई?
गंवरा भए शहर के बासी,
न्याय धीश हैं चमरा पासी.
पशुअन तक सनरक्षन पाइन,
सवरण जान्यो जनम गंवाइन.
नारी माँ बेटी बन बनयाई,
तुलसी बाबा राम दुहाई.

چھیچھ لیدر 

،دھول گنوار شودر پشو ناری 
،بھیے نیاے کے سب ادھیکاری 
،ان سب کو اپرادھی جانا 
،سبھے کی مون سمادھی جانا 
،نربل جیو کو پاپی سمجھا 
،تاڑک کو پرتاپی سمجھا 
،ان کے موڑے سینگ اگ آئ 
،انکے مار سے کون بچائی 
،گنورا بھنے شہر کے باسی 
،نیاے دھیش ہیں چمرا پاسی 
،پشوں تک سنرکچہن پائن 
،سورن جانو جنم گوائیں 
،ناری ماں بیٹی بن آئ 
تلسی بابا رام دہائی ٠ 

Tuesday, August 28, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 42 जोरुवा कहिस



42

जोरुवा कहिस

भ्रमित हव्यो गयो, भ्रमण करिके,
चार धाम हव्यो आएव.
माँगा, बाँटा अउर परोसा,
ज्ञान सभै लै आएव.
जोड़ा गांठा धेला पैसा,
पनडन का दै आएव,
दइव रहा मन तुम्हरे बैठा,
ओह पर न पतियाएव.

جروا کہس 
،بھرمت ہوے گیو ، بھرمن کر کے 
.چار دھام ہوے آ یو 
،مانگا باٹا اور پروسہ 
.گیان سبھے لے آیو 
،جوڑا گانٹھ پیسہ دھیلا 
.پنڈن کا دے آیو 
،دیو رہا من تمہرے بیٹھا ،
.اوہ پر نہ تتیایو

Monday, August 27, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 41 क़ुदरत का मशविरा



41

क़ुदरत का मशविरा

अध्-जले ऐ पेड़! तू है, उम्र ए रफ़्ता0 का शिकार,
क़र्ब ए गरमा झेलता, तनहा खडा है धूप में,
इब्न ए आदम को है, बेचैनी कि इन हालात में,
ढूढ़ता फिरता है पगला, मंदिरों-मस्जिद की छाँव.
जानता है तू कि बस, ग़ालिब है क़ुदरत का निज़ाम3,
ज़िन्दगी धरती पे जब, होती है बे बर्ग ओ समर4,
तब ज़मीं पर बार, बन जाता है हर पैदा शुदा,
है ज़मीं बर हक़ कि ढोने हैं, उसे अगले जनम,
तेरे, मेरे, इनके, उनके, गोया हर मख़लूक़5 के.
ऐ शजर! कर तू जुबां पैदा, बता नादान को,
बस तेरे जैसे मुक़ाबिल, ये भी हों मैदान में,
मत पनाहें ढूँढें अपनी, रूह की बाज़ार में,
नातवानाई व् ज़ईफ़ी7, का न हल ढूँढें 'जुनैद',
काट लें बस हौसले से, यह सज़ा ए उम्र क़ैद.

0-जरा-वस्था १-गर्मी की पीड़ा 3-आदम की औलाद ३-व्यवस्था 
४-पत्ते एवं फल रहित ५ प्राणी वर्ग ६-पेड़ ७-बुढ़ाप काल

قدرت کا مشورہ

،ادھ جلے ائے پیڑتو ہے ، عمرِ رفتہ کا شکار 
،قرب گرما جھیلتا ، تنہا کھڑا ہے دھوپ میں 
،ابنِ آدم کو ہے بیچینی ، کہ ان حالات میں 
ڈھونڈھتا پھرتا ہے پگلا مندر و مسجد کی چھاؤں ٠

،جانتا ہے تو مگر، غالب ہے قدرت کا نظام 
،زندگی دھرتی پہ جب ، ہوتی ہے بے بال و ثمر 
،تب زمیں پر بار بن جاتا ہے ، ہر پیدا شدہ 
،ہے زمیں بر حق کہ ڈھونے ہے اسے اگلے جنم  
تیرے میرے ، انکے ان کے ، گویہ ہر مخلوق کے ٠

،ائے پیڑ! پیدا کر زبان ، سمجھا دے اس نادان کو 
،بس ترے جیسے مقابل ، یہ بھی ہوں میدان میں 
،مت پناہیں ڈھونڈھیں اپنی ، روح کی بازار میں 
،ناتوانی اور بڑھاپے کا ، نہ حل ڈھونڈھیں جنید
کاٹ لیں بس حوصلے سے یہ سزاۓ عمر قید ٠ 

Sunday, August 26, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 40 महा जननी भवः


40

महा  जननी भवः

ठहरो, वर-माला मत डालो, दो इक सदियाँ टालो,
बधू , तुम्हारा वर कैसा हो? खोजो और खंगालो.

संस्कार की जड़ता देखो, भूल चूक स्वीकारो,
नव दर्शन की महिमा समझो, अंधी सोच निकालो.

मिथ्या,पाखंड,भेद भाव और दीन धरम के मारे,
हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई, बौध, जैन मत पालो.

जिस ने जीत लिया हो जग को, मर्यादा रच ली हो,
ऐसा सरल, सबल, शुभ, साथी मिले तो शीश नवा लो.

स्मारक बन जाएँ तुम्हारी संताने क्षित्जों पर,
एक महा मानव को जन्मो, उसमे सब को ढालो.

डावांडोल है धरती माता, नीच हीन हाथों में,
धरती जननी तुम भी जननी, धरती तुम ही संभालो.

ठहरो वर-माला मत डालो ----

مہا جننی بھوہ 

،ٹھہرو! ور مالا مت ڈالو ، دو اک صدیاں ٹالوتم 
ودھو! تمہارا ور کیسا ہو ، کھو جو اور کہنگالوتم ٠

،سنسکار کی جڑتا دیکھو ، بھول چوک سویکاروتم 
نو درشن کی مہما سمجھو ،اندھکار نکالو تم٠

،پاکھنڈ متھیہ بھید بھاؤ اور دین دھرم کے مارے 
ہندو مسلم سکھ عیسائی ، جیں بودهیہ مت پالوتم ٠

،جس نے جیت لیا ہو جگ کو ، مریادہ رچ لی ہو 
ایسا سرل سبل شدھ مانو ، ملے تو شیش  نوا لوتم ٠

،ا سمارک بن جایں تمہاری سنتانیں چھتجوں پر 
ایک مہا منو کو جنمو ، اسمیں سب کو ڈھالوتم ٠

ٹھہرو ور مالا مت - - - -

Saturday, August 25, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 39 अकेलवा



39 

अकेलवा

वह पेड़ देखो तनहा है, पौदों के दर्मियाँ,
खेतों का और जीवों का, जैसे हो पासबाँ.

देता है राहगीरों को, मंजिल के रास्ते,
बादल को खींच लाता, खेतों के वास्ते.

चिडि़यों का घर दुवार है और ऐश गाह है,
गर्मी में मवेशी के लिए, इक पनाह है.

महकाता है फ़ज़ाओं को, जब फूलता है यह,
फलता है, तो फलों को लिए, झूलता है यह.

जब तक जिएगा, सब के लिए आम देगा यह,
मरने के बाद भी, हमें आराम देगा यह.

इनसाँ तो बस ज़मीं पे है, लेने के वास्ते,
यह पेड़ बस कि होते हैं, देने के वास्ते.

 اکیلوہ

،وہ پیڑ دیکھو تنہا ہے ، کھیتوں کے درمیاں 
پودوں کا، کھیتی باڑی کا جیسے ہوپاسباں ٠

،دیتا ہے راہ گیروں کو منزل کے راستے 
بادل کو کھینچ لاتا ہے ، پیڑوں کے واسطے ٠

،چڑیوں کا گھر دُوار ہے ، وہ عیش گاہ ہے 
آزاد مویشی کے لئے وہ پناہ ہے ٠

،مہکتا ہے فضاؤں کو جب پھولتا ہے وہ 
پھلتا ہے تو پھلوں کو لئے جھولتا ہے وہ ٠

،جب تک جئے گا ، سب کے لئے آم یہ دےگا 
مرنے کے بعد بھی ہمیں آرام یہ دےگا ٠

،انساں تو بس زمیں پہ ہے ، پانے کے واسطے 
یہ پیڑ بس کہ جیتے ہے ، لانے کے واسطے ٠ 

Friday, August 24, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 38 पतझड़ के पात



38 

पतझड़ के पात

हूँ मुअल्लक़1 इन्तेहा-व्-ख़त्म शुद2 के दरमियाँ.
ऐ जवानी! अलविदा!! अब आएगी दिल पर ख़िज़ाँ3.

ज़ेहन अब बहके गा जैसे पहले बहके थे क़दम,
कूए-जाना4 का मुसाफिर जायगा अब आश्रम.

यह वहां पा जाएगा टूटा हुवा कोई गुरू,
ज़ख्म खुर्दा5 मंडली होगी, यह होगा फिर शुरू.

धर्मो-मज़हब की किताबें फिर से यह दोहराएगा,
नव जवानो को ब्रम्ह्चर और फिकः6 समझाएगा.

फिर यह चाहेगा कोई पहचान बन जाए मेरी,
दाढ़ी,चोटी,और जटा ही शान बन जाए मेरी.

फिर ये अपना बुत तराशेगा गुरू बन जाएगा,
ये समझता है ब़का में आबरू बन जाएगा.

१-बीचअटका हुवा २-इतिऔर समाप्ति ३-प्रेमिका की गली ५-घायल ६-धर्म-शास्त्र ७-शेष .

پتجھڑ کے پات

،ہوں معلق انتہا و ختم شُد کے درمیان 
،ائے جوانی ! الوداع ، اب آیگی دل پر خزاں 
،ذہن اب بہکیگا جیسے پہلے بہکے تھے قدم 
،کووۓ جاناں کا مسافر جائیگا اب آشرم 
،یہ وہاں پا جائیگا ٹوٹا ہوا کوئی گُرو 
،زخم خوردہ منڈلی ہوگی ، یہ ہوگا پھر شروع 
،دھرم و مذہب کی کتابیں پھر سے یہ دوہرایگا 
نو جوانوں کو برہمچر اور فقہہ سمجھاے گا ٠ 

،پھر یہ چاہے گا ، کوئی پہچان بن جاۓ مری 
،داڑھی چوٹی اور جٹا ہی شان بن جاۓ مری
،پھر یہ کوئی مٹہ تراشیگا ، گُرو بن جاۓگا 
یہ سمجھتا ہے بقا میں ، آبرو بن جاۓگا ٠ 

Thursday, August 23, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 37 घुट्ती रूहें



37

घुट्ती रूहें

हाय ! लावारसी में इक बूढ़ी,
तन से कुछ हट के रूह लगती है.
रूह रिश्तों का बोझ सर पे रखे,
दर-बदर मारी मारी फिरती है.
सब के दरवाज़े  खटखटाती है,
रिश्ते दरवाज़े  खोल देते हैं,
रूह घुटनों पे आ के टिकती है,
रिश्ते बारे-गरां को तकते हैं,
वह कभी बोझ कुछ हटाते हैं,
या कभी और लाद देते हैं.

रूह उठती है इक कराह के साथ,
अब उसे अगले दर पे जाना है.
एक बोझिल से ऊँट के मानिंद,
पूरी बस्ती में घुटने टेकेगी,
रिश्ते उसका शिकार करते हैं,
रूह को बेक़रार करते हैं।
साथ देते हैं बड़बड़ाते हुए,
काट खाते हैं मुस्कुराते हुए.38

گُھٹتی روحیں

،ہاۓ ! لا وارثی میں اک بوڑھی 
،تن سے کچھ بڑھ کے روح لگتی ہے 
،روح رشتوں کا بوجھ ، سر پہ رکھے 
در بدر ماری ماری پھرتی ہے ٠

،درپہ رشتوں کے کھٹکھٹاتی ہے 
،رشتے دروازے کھول دیتے ہیں 
،روح گھٹنوں پہ آ کے ٹکتی ہے 
،رشتے بار گراں کو تکتے ہیں 
،وہ کبھی بوجھ کُچھ ہٹاتے ہیں 
کبھی کُچھ اور لاد دیتے ہیں ٠

،روح اُٹھتی ہے اک کرا ہ کے ساتھ 
،اب اسے اگلے در پہ جانا ہے 
،ایک بوجھل سے اونٹ کی مانند 
پوری بستی میں گھٹنے ٹیکے گی ٠

، رشتے اسکا شکار کرتے ہیں 
،روح کو بے قرار کرتے ہیں 
،ساتھ دیتے ہیں بڑ بڑاتے ہوئے 
کاٹ کھاتے ہیں مُسکراتے ہوئے ٠ 

Wednesday, August 22, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 36 सुब्ह की पीड़ा



36 

सुब्ह की पीड़ा

सुब्ह फूटी है नींद टूटी है,
लेटे-लेटे, मैं बैठ जाता हूँ ,
ध्यान, चिंतन के यत्न करता हूं,
ग़र्क़ होना भी फिर से सोना है,
कुछ भी पाना, न कुछ भी खोना है.
*
सुब्ह फूटी है, नींद टूटी है,
सैर करने मैं चला जाता हूँ,
तन टहलता मन पे बोझ लिए,
याद आते हैं ख़ल्क़ के शैताँ,
रूहे-बद साथ साथ रहती है,
मेरी तन्हाइयाँ कचरती है.
*
सुब्ह फूटी है नींद टूटी है,
चीख उठता है भोपू मस्जिद का,
चीख उठती है नवासी मेरी,
बस अभी चार माह की है वह,
यूँ नमाज़ी को वह जगाते है,
सोए मासूम को रुलाते हैं.
*
सुब्ह फूटी है नींद टूटी है,
पत्नी टेलिविज़न को खोले है,
ढोल ताशे पे बैठा इक पंडा,
झूमता,गाता और रिझाता है,
आने वाले हमारे सतयुग को,
अपने कलि युग में लेके जाता है.
*
सुब्ह फूटी है नींद टूटी है,
किसी मासूम का करूँ दर्शन,
वरना आ जायगा मिथक बूढा,
और पूछेगा ख़ैरियत मेरी,
घंटे घडयाल शोर कर देंगे,
रस्मी दावत अज़ान दे देगी.

صُبح کا درد

،صُبح پھوٹی ہے نیند ٹوٹی ہے 
،لیٹے لیٹے میں بیٹھ جاتا ہوں 
،دھیان چنتن کا یتن کرتا ہوں ،
،جھپکی آتی ہے ، سر جھٹکتا ہوں 
،غرق ہونا بھی ، پھر سے سونا ہے 
کُچھ بھی پانا ، نہ کُچھ بھی کھونا ہے٠

***
،صُبح پھوٹی ہے نیند ٹوٹی ہے 
،سیر کرنے میں چلا جاتا ہوں 
تن ٹہلتا ہے من کا بوجھ لئے 
،یاد آتے ہیں خلق کے شیطاں 
،روحِ بد ڈٹ کے ساتھ رہتی ہے
میری تنہائیاں کچرتی ہے ٠

****
،صُبح پھوٹی ہے نیند ٹوٹی ہے 
،پتنی ٹیلی وزن کو کھولے ہے
،بیٹھا ہارمونیم پہ اک پنڈا 
،جھومتا گاتا اور ریجھاتا ہے 
،آنے والے ہمارے ست یگ کو 
اپنے کلی یگ میں لیکے جاتا ہے ٠

*****
،صُبح پھوٹی ہے نیند ٹوٹی ہے 
،کسی معصوم کا درشن کر لوں 
،ورنہ آ جائگی بوڑھی متھیا 
،اور پوچھیگی خیریت میری 
،گھنٹے گھڑیال ، شور کر دینگے 
رسمی دعوت ، اذان دیدیگی ٠ 

Tuesday, August 21, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 35 ईद की महरूमियाँ



35

ईद की महरूमियाँ 1

कैसी हैं ईद की ख़ुशियाँ, यह नक़ाहत की तरह,
जश्न क़र्ज़े की तरह, नेमतें क़ीमत की तरह.
ईद का चाँद ये, कैसी ख़ुशी को लाता है,
घर के मुखिया पे नए पन के सितम ढाता है.

ज़ेब तन कपड़े नए हों तो ख़ुशी ईद है क्या?
फ़िक्र-ए-ग़ुरबा के लिए हक़ की ये ताईद है क्या?
क़ौम पर लअनतें हैं फ़ितरा व् ख़ैरात व् ज़कात ,
ठीकरे भीख की ठंकाए है, उमरा की जमाअत.

पॉँच वक़तों  की नमाज़ें हैं अदा रोज़ाना,
आज के रोज़ अज़ाफ़ी है सफ़र दोगाना.
इसकी कसरत से कहीं दिल में ख़ुशी होती है,
भीड़ में ज़िन्दगी तनहा सी पड़ी होती है.

ईद के दिन तो नमाज़ों से बरी करना था,
छूट इस दिन के लिए मय-ब-लबी करना था.
नव जवाँ देव परी के लिए मेले होते,
अपनी दुन्या में दो महबूब अकेले होते.

रक़्स होता, ज़रा धूम धड़ाका होता,
फुलझड़ी छूटतीं, कलियों में धमाका होता.
हुस्न के रुख़ पे शरीयत का न परदा होता,
मुत्तक़ी१०,पीर, फ़क़ीहों११, को ये मुजदा१२, होता.

हम सफ़र चुनने की यह ईद इजाज़त देती,
फ़ितरते ख़ल्क़१३ को संजीदगी फ़ुर्सत देती.
ईद आई है मगर दिल में चुभी फांस लिए,
क़र्बे१४ महरूमी लिए, घुट्ती हुई साँस लिए.

१-वनचित्ता २-कमजोरी ३-गरीबों की चिंता ४-ईश्वर 5-समर्थन 
६-दान की विधाएँ ७-धनाड्य ८-ईद की नमाज़ को दोगाना कहते ९-धर्मं विधान 
१०-सदा चारी  11-धर्म-शास्त्री १३-खुश खबरी १3-जीव प्रवर्ति14-वंचित की पीड़ा


عید کی محرومیاں

،کیسی ہیں عید کی خوشیاں ، یہ نقاہت جیسی 
،جشن قرضے کی طرح ، نعمتیں قیمت جیسی 
عید کا چاند ، خوشی لےکے کہاں آتا ہے ؟
گھر کے مکھیہ پہ ، نئے پن کے ستم ڈھاتا ہے ٠

زیبِ تن کپڑے نئے ہوں ، تو خوشی عید ہے کیا ؟
فکرِ غربہ کے لئے ، حق کی یہ تائید ہے کیا ؟
،قوم کی لعنتیں ہیں ، فطرہ و خیرات و زکات 
ٹھیکرے بھیکھ کے ، ٹھنکاتی ہے عمرہ کی جماعت ٠

،پانچ وقتوں کی نمازیں ہیں ادا روزانہ 
،آج کے روز اضافی ہے ، سفرِ دوغانا 
ان کی کثرت سے ، کہیں کوئی خوشی ملتی ہے ؟
اس کی ییاری میں ہی ، نصف صدی لگتی ہے ٠

،آج کے دن تو نمازوں سے بری کرنا تھا 
،چھوٹ اس دن کے لئے مے بہ لبی کرنا تھا 
،نو جواں دیو و پری کے لئے میلے ہوتے 
محوِ انفاس میں ہر جوڑے اکیلے ہوتے ٠

،ان چھئے جسم ، نئے لمس کی لذّت پاتے 
،انتخباتِ نظر ، رتبۂ فطرت پا تے 
،حسن کے رخ پہ ، شریعت کا نہ پردہ ہوتا 
متقی ، پیر ، فقیہوں کو یہ مژدہ ہوتا ٠

،ہم سفر چننے کی ، یہ عید اجازت دیتی 
،فطرت خلق کو ، سنجیدگی فرست دیتی 
،عید آئ ہے ، مگر دل میں چبھی پھانس لئے 
قربِ محرومی لئے ، گھٹتی ہوئی سانس لئے ٠ 

Monday, August 20, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 34 मेरी खुशियाँ



34

मेरी खुशियाँ

जा पहुँचता हूँ कभी डूबे हुए सूरज तक,
ऐसा लगता है मेरी ख़ुशियाँ वहीं बस्ती हैं,
जी में आता है, वहीं जा के रिहाइश कर लूँ ,
क्या बताऊँ कि अभी काम बहुत बाक़ी हैं.

मेरी  ख़ुशियाँ मुझे तन्हाई में ले जाती हैं,
आलाम ए क़र्ब1 से कुछ देर छुड़ा लेती हैं,
पास वह आती नहीं, बातें किया करती हैं,
बीच हम दोनों के इक सिलसिला ए लासिल्की2 है.

मेरी खुशियों की ज़रा ज़ेहनी बलूग़त3 देखो,
पूछती रहती हैं मुझ से मेरी बच्ची की तरह,
सच है रौशन तो ये तारीकियाँ ग़ालिब क्यूं हैं?
ज़िन्दगी गाने में सब को ये क़बाहत क्यूं है?

एक जुंबिश सी मेरी सोई ख़िरद पाती है,
अपनी लाइल्मी पे मुझ को भी मज़ा आता है,
देके थपकी मैं इन्हें टुक से सुला देता हूँ ,
इस तरह लोरियां मैं उनको सुना देता हूँ ----

"ऐ मेरी खुशियों! फलो,फूलो,बड़ी हो जाओ,
अपने मेराज के पैरों पे खड़ी हो जाओ,
इल्म आने दो नई क़दरें ज़रा छाने दो,
साज़ तैयार है, नगमो को सदा१० पाने दो,

तुम जवाँ होंगी, बहारों की फ़िज़ा छाएगी,
ज़िन्दगी फ़ितरते आदम की ग़ज़ल जाएगी.
रौशनी इल्मे नव११ की आएगी,
सारी तारीकियाँ मिटाएगी,

जल्दी सो जाओ सुब्ह उठाना है,
कुछ नया और तुमको पढ़ना है".


१- व्याकुळ २-वायर-लेस ३-बौधिक व्यसक्ता 4-अंधकार ५ -विकार ६-अक्ल ७-अज्ञानता 
८-शिखर ९-मान्यताएं१०-आवाज़ ११-नई शिक्षा


میری خوشیاں 

،جا پہنچتا ہوں کبھی ، ڈوبے ہوئے سورج تک
،ایسا لگتا ہے ، میری خوشیاں وہیں رہتی ہیں 
،جی میں آتا ہے ، وہیں جا کے سُکونت لے لوں 
کیا بتاؤں کہ ابھی ، کام بہت باقی ہہیں٠

،میری خوشیاں مُجھے تنہائی میں لے جاتی ہیں 
،قیدِ آلام سے کچھ لمحہ چُھڑا لیتی ہیں
،پاس وہ آتی نہیں ، باتیں کیا کرتی ہیں 
بیچ ہم دونوں کے ، اک سلسلہ ے لا سلکی ہے٠

 ،میری خوشیوں کی ذرا کی ، ذرا ذہنی بلوغت دیکھو 
،پوچھتی رہتی ہیں ، مجھ سے مری بچّی کی طرح 
سچ ہے روشن تو یہ تاریکیاں غالب کیوں ہیں ؟
زندزگی گانے میں ، انساں کو قباحت کیوں ہے ؟

،ایک جنبش سی مری مُردہ خرد پاتی ہے 
،اپنی لاعلمی پہ میں پھوٹ کے رو دیتا ہوں 
،دیو پریوں بھری لوری کی تھپکیاں دیکر 
،اور خود روتے ہوئے ، انکو سُلا دیتا ہوں 

،ائے مری خوشیو ! پھلو ، پھولو ، بڑی ہو جاؤ 
،اپنے معراج کے پیروں پہ کھڑی ہو جاؤ 
،علم آنے دو ، نئی قدریں ذرا چھانے دو 
،ساز تیاّر ہیں ، نغموں کو صدا پانے دو 
،تم جواں ہونگی ، بہاروں کی فضا آیگی 
زندگی فطرت آدم کی ، غزل گا یگی ٠
،روشنی علم نو کی آے گی 
،ساری تاریکیاں مٹا یگی 
،جلد سو جاؤ ، صبح اٹھنا ہے 
تھوڑا کُچھ اور نیا پڑھنا ہے ٠ 

Sunday, August 19, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 33 हक़ बजानिब1


33

हक़ बजानिब1 

वहदानियत2 के बुत को गिराया तो ठीक था,
इस सेह्र किब्रिया में न आया तो ठीक था.

गर हुस्न को बुतों में उतारा तो ठीक था,
पत्थर में आस्था को तराशा तो ठीक था.

फरमूदः ए फ़लक के तज़ादों छोड़ कर,
धरती के मूल मन्त्र को पाया तो ठीक था.

माटी सभी की जननी शिकम भरनी तू ही है,
पुरखों ने तुझ को माता पुकारा तो ठीक था.

ऐ आफ़ताब7! तेरी शुआएं हैं ज़िन्दगी,
तुझ को किसी ने शीश नवाया तो ठीक था.

पेड़ों की बरकतों से सजी कायनात है,
उन पर ख़िरद१० ने पानी चढाया तो ठीक था.

आते हैं सब के काम मवेशी अज़ीज़ तर११,
इन को जूनून के साथ जो चाहा तो ठीक था.

इक सिलसिला है, मर्द पयम्बर का आज तक,
औरत के हक़ को देवी बनाया तो ठीक था.

नदियों,समन्दरों, से हमे ज़िन्दगी मिली,
साहिल पे उनके जश्न मनाया तो ठीक था.

गुंजाइशें ही न हों, जहाँ इज्तेहाद१२ की,
ऐसे में लुत्फ़ ऐ कुफ़्र१३ जो भाया तो ठीक था.

फ़िर ज़िन्दगी को रक़्स की आज़ादी मिल गई,
'मुंकिर' ने साज़े-नव१४ जो उठाया तो ठीक था.

१-सत्य की ओर २-एकेश्वर ३-महा ईश्वर का जादू ४-आकाश वाणी ५-दोमुही बातें ६-उदार पोषक ७-सूरज 
८-किरने ०-ब्रह्मांड १०-बुद्धि ११-प्यारे १२-संशोधन १३-कुफ्र का मज़ा १४-नया साज़.

حق بجانب

،وحدانیت کے بُت کو گرایا ، تو ٹھیک تھا 
اس سحرِ کبریا کو نکارہ ، تو ٹھیک تھا ٠

،گر حُسن کو بتوں میں سمایا ، تو ٹھیک تھا 
پتھر میں آستھا کو تراشہ ، تو ٹھیک تھا ٠

،فر مودہء فلک  کے تقاضوں کو چھوڑکر  
دھرتی کے مول منر جو پایا ، تو ٹھیک تھا ٠

،ماٹی سبھی کی جننی ، شکم بھرنی تو ہی ہے 
پُرکھوں نے تیرے مان کو پوجا ، تو ٹھیک تھا ٠

،اے آفتاب تیری ، شعایں ہیں زندگی 
تجھکو اُنہوں نے شیش نوایا ، تو ٹھیک تھا ٠

،پیڑوں کی برکتوں  سے سجی کاینات ہے 
اس پر کسی نے پانی چڑھایا ، تو ٹھیک تھا ٠

،آتے ہیں سب کے کام مویشی عزیز تر 
انکو جنوں کے ساتھ جو چاہا ، تو ٹھیک تھا ٠

،اک سلسلہ ہے مرد پیمبر کا آج تک 
عورت کے حق کو دیوی بنایا ، تو ٹھیک تھا ٠

،ندیوں ، سمندروں سے ہمیں زندگی ملی 
ساحل پہ انکے جشن منایا تو ٹھیک تھا ٠ 

،گُنجائشیں نہیں ہوں جہاں اجتہاد میں 
ایسے لُطفِ کُفر جو بھایا تو ٹھیک تھا ٠

،پھر زندگی کو رقص کی آزادی مل گئی 
منکر نے سازِ نو جو اُٹھایا تو ٹھیک تھا ٠ 

जुंबिशें - - - नज़्म 32 आस्तिक और नास्तिक


32

आस्तिक और नास्तिक

बच्चों को लुभाते हैं परी देव के क़िस्से,
ज़हनों में यकीं बन के समाते हैं ये क़िस्से,

होते हैं बड़े फिर वह समझते हैं हक़ीक़त,
ज़ेहनों में मगर रहती है कुछ वैसी ही चाहत.

इस मौके पे तैयार खड़ा रहता है पाखण्ड,
भगवानो-खुदा, भाग्य, कर्म और क्षमा दंड.

नाकारा जवानों को लुभाती है कहानी,
खोजी को मगर सुन के सताती है कहानी.

कुछ और वह बढ़ता है तो बनता है नास्तिक,
जो बढ़ ही नहीं पाता वह रहता है आस्तिक.


ناستک اور آستک

،بچوں کو لُبھاتے ہیں پری دیو کے قصّے 
ذہنوں میں یقین بن کے سماتے ہیں یہ قصّے٠ 

،ہوتے ہیں بڑے وہ تو سمجھتے ہیں حقیقت ،
ذہنوں میں مگر رہتی ہے کچھ ایسی ہی چاہت ٠ 

،اِس موقعے پہ تییار کھڑا رہتا ہے پاکھنڈ ،
الله کا روزِ جزا ، بھگون کے چھما ڈنڈ ٠

،ناکارہ جوانوں کو لبھاتی ہے کہانی ،
کھوجی کو مگر سُن کے ستاتی ہے کہانی ٠

،ذہنی بلوغتوں پہ یہ بنتا ہے  ناستک ،
بالغ نہیں جو ہوتا وہ بنتا ہے آستک ٠ 

Friday, August 17, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 31 हिंदुत्व


31

  हिंदुत्व

सदियों से गढ़ते गढ़ते, गढ़ाया है ये हिदुत्व,
पलकों को मूंदते नहीं, आया है ये हिंदुत्व.

तबलीग़1, जोर व् ज़ुल्म, जिहादों से दूर है,
सद भावी आचरण से, नहाया है ये हिंदुत्व.

तारीख़2  का लिहाज़ है, जुग़राफ़िया3  का पास,
आब ओ हवा में अपने, नहाया है ये हिंदुत्व.

नदियों में तैरता है, पहाड़ों में बसा है,
सूरज को, चाँद तारों को, भाया है ये हिंदुत्व.  

आओ मियाँ कि देखें, ज़रा घुस के इसका हुस्न,
पुरखों का है, कहाँ से पराया है ये हिंदुत्व. 

क़द्रें4 नई समेट के, चलता है डगर पे,
हाँ, इर्तेकाई5 हुस्न की, काया है ये हिंदुत्व.

तहजीब ए अर्ज़6 की ये, मुसलसल हयात7 है,
गर नाप तौल हो, तो सवाया है ये हिंदुत्व.

अरबों के फ़ल्सफ़े हि, न भाएँ ख़मीर8 को,
'मुंकिर' को भाए हिन्द, सुहाया है ये हिंदुत्व.

1-प्रचार 2-इतिहास 3-भूगोल 4-मान्यताएं 5-रचना 6-भूभाग 7-बानगी 

ہندوتو 

،صدیوں سے گڑھتے گڑھتے ، گڑھایا ہے یہ ہندوتو 
.پلکوں کے جھپکتے نہیں آیا ہے یہ ہندوتو

،تبلیغ جور و ظلم ، جہادوں سے دور ہے 
.سد بھاوی آچرن سے نہایا ہے یہ ہندوتو

،تاریخ کا لحاظ ہے ، جغرافیہ کا پاس 
.آب و ہوا میں اپنے، نہایا ہے یہ ہندوتو

،ندیوں پہ تیرتا ہے ، پہاڑوں پہ بسا ہے 
.سورج کو چاند تاروں کو، بھا یا ہے یہ ہندوتو.

،آؤ میاں کہ دیکھیں ذرا گھس کے اس کا حسن 
.پرکھوں کا ہے ، کہاں سے پرایا ہے یہ ہندوتو

،قدریں نی سمیٹ کے ، چلتا ہے دگر پہ 
.ہاں ! ارتقائی حسن کا کایا ہے یہ ہندوتو.

،تہذیب ارض کی یہ مسلسل حیات ہے 
.گر ناپ تول ہو تو سوایا ہے یہ ہندوتو

،عربوں کے فلسفے ہی ، نہ بھا یں ضمیر کو 
.منکر کو بھاۓ ہند ، سھایا ہے یہ ہندوتو