Tuesday, May 29, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 71 स्वार्थ की भाषा ड्योढा बांचे



71

स्वार्थ की भाषा ड्योढा बांचे, लालच पढ़े सवय्या,
रिश्तों में जब गांठ पड़े, तो कोई बहेन न भय्या.

घूर घूर के जुरुवा देखे, टुकुर टुकुर ऊ मय्या,
दो फाडों में चीरे हम को, घर की ताता थय्या.

दूध पूत से छुट्टी पाइस, भूखी खड़ी है गय्या,
इस के दुःख को कोई न देखे, देखै खड़ा क़सय्या.

गुरू गोविन्द की पुड़िया बेचे, कबर कमाए रुपय्या,
पाखंड और कलाकारी की, ईश चलाए नय्या.

गिरजा और गुरुद्वारे बोलें, ज़ोर लगा के हय्या!
मन्दिर, मस्जिद इक दूजे की, काटे हैं कंकय्या.

किसके लागूं पाँव खड़े हैं गाड, ख़ुदा और दय्या,
'मुंकिर' को ये कोई न भाएँ, सब को रमै रमय्या.

***

،سوارتھ کی بھاشا ڈیوڑھا بانچے، لالچ پڑھے سویّا 
رشتوں میں جب گانٹھ پڑے تو، کوئی بہیں نہ بھیّہ٠ 

،گھور گھور کے جورُوا دیکھے، ٹُکر ٹُکر وہ میّہ 
دو پا ٹن میں چیرے ہم کو، گھر کی تاتھا تھیّہ٠ 

،دودھ پوت سے چُھٹّی پائس، بھوکی کھڑی ہے گیّا  
اسکے دُکھ کو کوئی نہ جانے، دیکھے کھڑا قصیّا٠ 

،گرو گووند کی پُڑیا بیچے، قبر کماۓ رو پیّیہ 
پاکھنڈ اور ریا کاری کی ایش چلاۓ نیّه٠ 

،گِرجہ اورگرُودوارے سے، سب کھڑے تماشہ دیکھیں 
ہندو مسلم، مندر مسجد کی، کاٹے کنکیّہ۰  

،کس کے لاگوں پانو، کھڑے ہیں گاڑ، خدا اور دیّہ 
منکر کو یہ کوئی نہ بھاۓ، سب کو رمے رمیّہ٠ 

No comments:

Post a Comment