Wednesday, May 16, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 59 ये तसन्नो में डूबा हुवा, प्यार है,


59 

ये तसन्नो में डूबा हुवा, प्यार है,
क्या कोई चीज़ फिर, मुफ़्त दरकार है.

फैली रूहानियत की, वबा क़ौम में,
जिस्म मफ़्लूज है, रूह बीमार है.

नींद मोहलत है इक, जागने के लिए,
जाग कर सोए तो, नींद आज़ार है.

बुद्धि हाथों पे सरसों, उगाती रही,
बुद्धू कहते रहे, ये चमत्कार है.

मुज़्तरिब हर तरफ़, सीधी जमहूर है,
मुन्तख़िब की हुई, किसकी सरकार है.

बाँटता फिर रहा है, वो पैग़ाम ए मौत,
भीड़ थमती है, जैसे तलबगार है.

एक झटके में जोगी, कहीं जा मर,
क़िस्त में मौत तेरी, ये बेकार है.

हों न'मुंकिर' इबारत ये उलटी सभी,
ले के आ आइना वोह मदद गर है.

*आज़ार=रोग *मुज़्तरिब=बेचैन *मुन्तखिब=चुनी हुई.

، یہ تصنع میں ڈوبا ہوا پیار ہیے
کیا کوئی چیز پھر مفت درکار ہے ٠ 

، پھیلی روحانیت کی وبا قوم میں
جسم مفلوج ہے ذہن بیمار ہے ٠ 

، نیند مہلت ہے اک جاگنے کے لئے 
جاگ کر سوۓ تو نیند آزار ہے ٠ 

، بُدھی ہاتھوں پہ سرسوں اُگاتی رہی، 
بدھو کہتے رہے یہ چمتکار ہے ٠

، مضطرب ہر طرف سیدھی جمہور ہے 
مُنتخب کی ہی کس کی سرکار ہے ٠

، بانٹتا پھر رہا ہے وہ پیغامِ موت 
بھڑ روکتی ہے جیسے طلبگار ہے ٠ 

، ایک جھٹکے میں جوگی کہیں جاکے مر 
قسط میں موت تیری یہ بیکا ر ہے ٠ 

، ہوں نہ منکر عبارت یہ اُلٹی سبھی 
لے کے آ آئینہ وہ مددگار ہے ٠

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