Sunday, May 20, 2018

64 मैं अकेला, तू अकेला, सब अकेले हैं यहाँ,



64

मैं अकेला, तू अकेला, सब अकेले हैं यहाँ,
दे रहा उपदेश स्वामी, भीड़ में बैठा वहाँ.

जन हिताय उपवनों के, शुद्ध पावन मौन में,
धर्म की जूठन परोसे, हैं, जुनूनी टोलियाँ.

जज़्बा ए शर देखिए, उस मर्द ए मुतलक़ में ज़रा,
या शहीदे जंग होगा, या तो फिर ग़ाज़ी मियाँ.

बिक गया है कुछ नफ़े के साथ, वह तेरा हबीब,
बाप की लागत थी उस पे, माँ का क़र्ज़ ए आसमाँ.

मैं समझता हूँ नवाह व् गिर्द2 पे ग़ालिब हूँ मैं,
ग़लबा ए रूपोश जैसा गिर्द3 है मेरे जहाँ.

हर तरफ़ बातिल हैं छाए, जाहिलों की है पकड़,
कैसे मुंकिर इल्म अपना, झेले इनके दरमियाँ.

१-दुष्ट-भाव मीठी-आस-पास ३-चहु ओर *बातिल =मिथ्य

،میں اکیلا، تو اکیلا، سب اکیلے ہیں یہاں 
دے رہا ہے درس راہب، بھیڑ میں بیٹھا وہاں٠ 

،جَن ہتا ۓ، شُدھ پا ون مَون میں، کے اُپونوں
 دھرم کا جوٹھن پروسے ہیں جنونی ٹولیاں٠ 

،جزبہء  شر دیکھئے اس مردِ مطلق میں ذرا 
یا جہادی مرد ہوگا، یا تو پھر غازی میاں٠ 

،بک گیا ہے کچھ نفع کے ساتھ وہ تیرا حبیب 
باپ کی لاگت تھی اُس پہ، ماں کا قرضِ آسماں٠ 

،میں سمجھتا ہوں، نواے گِرد پرغالب ہوں میں 
غلبہء روپوش جیسا، گِرد ہے میرے جہاں٠ 

،ہر طرف باطل ہیں غالب، جاہلوں کی ہے پکڑ 
کیسے منکر علم اپنا، جھیلیں انکے درمیاں٠ 

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