41
क़ुदरत का मशविरा
अध्-जले ऐ पेड़! तू है, उम्र ए रफ़्ता0 का शिकार,
क़र्ब ए गरमा१ झेलता, तनहा खडा है धूप में,
इब्न ए आदम२ को है, बेचैनी कि इन हालात में,
ढूढ़ता फिरता है पगला, मंदिरों-मस्जिद की छाँव.
जानता है तू कि बस, ग़ालिब है क़ुदरत का निज़ाम3,
ज़िन्दगी धरती पे जब, होती है बे बर्ग ओ समर4,
तब ज़मीं पर बार, बन जाता है हर पैदा शुदा,
है ज़मीं बर हक़ कि ढोने हैं, उसे अगले जनम,
तेरे, मेरे, इनके, उनके, गोया हर मख़लूक़5 के.
ऐ शजर!६ कर तू जुबां पैदा, बता नादान को,
बस तेरे जैसे मुक़ाबिल, ये भी हों मैदान में,
मत पनाहें ढूँढें अपनी, रूह की बाज़ार में,
नातवानाई व् ज़ईफ़ी7, का न हल ढूँढें 'जुनैद',
काट लें बस हौसले से, यह सज़ा ए उम्र क़ैद.
0-जरा-वस्था १-गर्मी की पीड़ा 3-आदम की औलाद ३-व्यवस्था
४-पत्ते एवं फल रहित ५ प्राणी वर्ग ६-पेड़ ७-बुढ़ाप काल
قدرت کا مشورہ
،ادھ جلے ائے پیڑتو ہے ، عمرِ رفتہ کا شکار
،قرب گرما جھیلتا ، تنہا کھڑا ہے دھوپ میں
،ابنِ آدم کو ہے بیچینی ، کہ ان حالات میں
ڈھونڈھتا پھرتا ہے پگلا مندر و مسجد کی چھاؤں ٠
،جانتا ہے تو مگر، غالب ہے قدرت کا نظام
،زندگی دھرتی پہ جب ، ہوتی ہے بے بال و ثمر
،تب زمیں پر بار بن جاتا ہے ، ہر پیدا شدہ
،ہے زمیں بر حق کہ ڈھونے ہے اسے اگلے جنم
تیرے میرے ، انکے ان کے ، گویہ ہر مخلوق کے ٠
،ائے پیڑ! پیدا کر زبان ، سمجھا دے اس نادان کو
،بس ترے جیسے مقابل ، یہ بھی ہوں میدان میں
،مت پناہیں ڈھونڈھیں اپنی ، روح کی بازار میں
،ناتوانی اور بڑھاپے کا ، نہ حل ڈھونڈھیں جنید
کاٹ لیں بس حوصلے سے یہ سزاۓ عمر قید ٠
No comments:
Post a Comment