Thursday, August 23, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 37 घुट्ती रूहें



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घुट्ती रूहें

हाय ! लावारसी में इक बूढ़ी,
तन से कुछ हट के रूह लगती है.
रूह रिश्तों का बोझ सर पे रखे,
दर-बदर मारी मारी फिरती है.
सब के दरवाज़े  खटखटाती है,
रिश्ते दरवाज़े  खोल देते हैं,
रूह घुटनों पे आ के टिकती है,
रिश्ते बारे-गरां को तकते हैं,
वह कभी बोझ कुछ हटाते हैं,
या कभी और लाद देते हैं.

रूह उठती है इक कराह के साथ,
अब उसे अगले दर पे जाना है.
एक बोझिल से ऊँट के मानिंद,
पूरी बस्ती में घुटने टेकेगी,
रिश्ते उसका शिकार करते हैं,
रूह को बेक़रार करते हैं।
साथ देते हैं बड़बड़ाते हुए,
काट खाते हैं मुस्कुराते हुए.38

گُھٹتی روحیں

،ہاۓ ! لا وارثی میں اک بوڑھی 
،تن سے کچھ بڑھ کے روح لگتی ہے 
،روح رشتوں کا بوجھ ، سر پہ رکھے 
در بدر ماری ماری پھرتی ہے ٠

،درپہ رشتوں کے کھٹکھٹاتی ہے 
،رشتے دروازے کھول دیتے ہیں 
،روح گھٹنوں پہ آ کے ٹکتی ہے 
،رشتے بار گراں کو تکتے ہیں 
،وہ کبھی بوجھ کُچھ ہٹاتے ہیں 
کبھی کُچھ اور لاد دیتے ہیں ٠

،روح اُٹھتی ہے اک کرا ہ کے ساتھ 
،اب اسے اگلے در پہ جانا ہے 
،ایک بوجھل سے اونٹ کی مانند 
پوری بستی میں گھٹنے ٹیکے گی ٠

، رشتے اسکا شکار کرتے ہیں 
،روح کو بے قرار کرتے ہیں 
،ساتھ دیتے ہیں بڑ بڑاتے ہوئے 
کاٹ کھاتے ہیں مُسکراتے ہوئے ٠ 

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