Saturday, August 11, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 25 - - - और नीत्शे ने कहा - - -


25

- - - और नीत्शे ने कहा - - -

ऐ पैकरे-मज़ालिम1 ! हो तेरा नाम कुछ भी,
गर तू है कार ए फ़रमाँ2, इस कायनात ए हू का?
कुछ जुन्बिशें है दिल की, इन को सबात दे दे.

क्यूं छूरियों  में तेरे, कुछ धार ही नहीं है?
इक वार वाली तेरी, तलवार ही नहीं है?
है कुंद तेरा ख़नजर, बरसों में रेतता है?
तीरों में तेरी नोकें कजदार क्यूं मुड़ी हैं?

फाँसी के तेरे फंदे क्यूं ढ़ीले रह गए हैं?
मख़लूक़ के लिए ये, त्रिशूल क्यूं चुना है?
ये हरबा ए अज़ीयत, तुझ को पसंद क्यूं है?
यक लख़्त मौत तुझ को, क्यूं कर नहीं गवारा?

ऐ ग़ैर मुअत्रिफ़ ! तू , सीधा सा तअर्रुफ़ दे,
क्या चाहता है सब से, इक साँस में बता दे,
हो सोना या कि चांदी, हीरे हों याकि मोती?
ज़ाहिर है तू कहेगा, कुछ भी नहीं ये कुछ भी,

तू चाहता है सब से, इक इक लहू की बूँदें,
जैसे दिया है तूने, वैसे ही लेगा वापस,
मय सूद ब्याज ज़ालिम, हैं तेरे मज़ालिम10,
इंसान हों कि हैवाँ, हों कितना भी परेशां,

सासों के लालची सब, हर हाल में जिएँगे,
सासों का मावज़ा दें, फ़िर तुझ को ही सदा दें.
इंसान जो ख़िरद११ है, सजदों में जी रहा है,
हैवाँ जो है तग़ाफ़ुल१२, वह तुझ पे भौन्कता है.

१-अत्याचार २-चलने वाला ३-ब्रह्माण्ड -ठहराव ५-जीव ६-वेदना यंत्र ७-एक साथ 
८-अनजान ९-पिरचय १०-अत्याचार ११-समझ १२-गफलत.

اور نیتشےنے کہا - - - 

،ائے پیکرِ مظالم ، ہو تیرا نام کچھ بھی
،گر تو ہے کارِ فرماں ، اس کایناتِ ہو کا
کچھ جنبشیں ہیں دل کی ، انکو سکوت دیدے ٠

کیوں خنجروں میں تیری ، کچھ دھار ہی نہیں ہے؟
اک وار والی تیری ، تلوار ہی نہیں ہے؟
ہے کند تیرا چاقو ، برسوں میں ریتتا ہے؟٠

تیروں میں تیری نوکیں ، ہلکی سی کیں مڑی ہیں؟
پھانسی کے تیرے پھندے ، کیوں ڈھیلے رہ گئے ہیں؟
مقتول کے لئے یہ ، ترشول کیوں چنا ہے؟

یہ حربہ ے اذیت ، تجھ کو پسند کیوں ہے؟
یک لخت موت تجھکو ، کیوں کر نہیں گوارہ؟
کیا چاہتا ہے سب سے ، اک سانس میں بتا دے؟ 

سونا ہو یا کہ چاندی ، ہیرا ہو یا کہ موتی؟
ظاہر ہے تو کہیگا ، کچھ بھی نہیں ، یہ کچھ بھی؟
تو چاہتا ہے سب سے ، اک اک  لہو کی بوندیں ٠ 

،جیسے دیا ہے تو نے ، ویسے ہی لیگا واپس
،معہ سود و بیاج ظالم، تیرے ہیں یہ مظالم 
انسان ہوں کہ حیواں ، جتنے بھی ہوں پریشاں ٠ 

،ساسوں کے لالچی سب ، ہر حال میں جئیں گے
ہچکی کا سلسلہ دیں ، تجھ کو ہر صدا دیں
تو کیسا ہے شکاری ، کیسا ہے تو لٹیرا ؟ 

،انسان جو خرد ہے ، سجدوں میں جی رہا ہے 
حیوان جو ہے غفلت ، وہ تخ پہ بھونکتا ہے ٠ 

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