Friday, August 24, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 38 पतझड़ के पात



38 

पतझड़ के पात

हूँ मुअल्लक़1 इन्तेहा-व्-ख़त्म शुद2 के दरमियाँ.
ऐ जवानी! अलविदा!! अब आएगी दिल पर ख़िज़ाँ3.

ज़ेहन अब बहके गा जैसे पहले बहके थे क़दम,
कूए-जाना4 का मुसाफिर जायगा अब आश्रम.

यह वहां पा जाएगा टूटा हुवा कोई गुरू,
ज़ख्म खुर्दा5 मंडली होगी, यह होगा फिर शुरू.

धर्मो-मज़हब की किताबें फिर से यह दोहराएगा,
नव जवानो को ब्रम्ह्चर और फिकः6 समझाएगा.

फिर यह चाहेगा कोई पहचान बन जाए मेरी,
दाढ़ी,चोटी,और जटा ही शान बन जाए मेरी.

फिर ये अपना बुत तराशेगा गुरू बन जाएगा,
ये समझता है ब़का में आबरू बन जाएगा.

१-बीचअटका हुवा २-इतिऔर समाप्ति ३-प्रेमिका की गली ५-घायल ६-धर्म-शास्त्र ७-शेष .

پتجھڑ کے پات

،ہوں معلق انتہا و ختم شُد کے درمیان 
،ائے جوانی ! الوداع ، اب آیگی دل پر خزاں 
،ذہن اب بہکیگا جیسے پہلے بہکے تھے قدم 
،کووۓ جاناں کا مسافر جائیگا اب آشرم 
،یہ وہاں پا جائیگا ٹوٹا ہوا کوئی گُرو 
،زخم خوردہ منڈلی ہوگی ، یہ ہوگا پھر شروع 
،دھرم و مذہب کی کتابیں پھر سے یہ دوہرایگا 
نو جوانوں کو برہمچر اور فقہہ سمجھاے گا ٠ 

،پھر یہ چاہے گا ، کوئی پہچان بن جاۓ مری 
،داڑھی چوٹی اور جٹا ہی شان بن جاۓ مری
،پھر یہ کوئی مٹہ تراشیگا ، گُرو بن جاۓگا 
یہ سمجھتا ہے بقا میں ، آبرو بن جاۓگا ٠ 

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