4
सना1
तूने सूरज चाँद बनाया, होगा हम से क्या मतलब,
तूने तारों को चमकाया, होगा हम से क्या मतलब,
तूने बादल को बरसाया, होगा हम से क्या मतलब,
तूने फूलों को महकाया, होगा हम से क्या मतलब.
तूने क्यूं बीमारी दी है, तू ने क्यूं आज़ारी दी?
तूने क्यूं मजबूरी दी है, तूने क्यूं लाचारी दी?
तूने क्यूं महकूमी१ दी है, तूने क्यूं सालारी२ दी?
तूने क्यूं अय्यारी दी है, तूने क्यूं मक्कारी दी?
तूने क्यूं आमाल३ बनाए, तूने क्यूं तक़दीर गढ़ा?
तूने क्यूं आज़ाद तबअ४ दी, तूने क्यूं ज़ंजीर गढ़ा?
ज़न, ज़र, मय५ में लज़्ज़त देकर, उसमें फिर तक़सीर६ गढ़ा,
सुम्मुम,बुक्मुम,उमयुन७ कहके, तअनो की तक़रीर८, गढ़ा.
बअज़ आए तेरी राहों से, हिकमत तू वापस लेले,
बहुत कसी हैं तेरी बाहें, चाहत तू वापस लेले,
काफ़िर, 'मुंकिर' से थोडी सी नफ़रत तू वापस लेले,
दोज़ख़ में तू आग लगा दे, जन्नत तू वापस लेले.
शीर्षक =ईश-गान १-आधीनता २-सेनाधिकार ३-स्वछंदता ५-सुंदरी,धन,सुरा,६-अपराध ७-अल्लाह 8-क़ुसूर
अपनी बात न मानने वालों को गूंगे,बहरे और अंधे कह कर मना करता है कि मत समझो इनको,इनकी समझ में न आएगा
ثنا
،تو نے سورج چاند بنایا ، ہوگا ! ہم سے کیا مطلب
،تو نے تاروں کو چمکایا ، ہوگا ! ہم سے کیا مطلب
،تو نے بادل کو برسایا ، ہوگا ! ہم سے کیا مطلب
تو نے پھولوں کو مہکایا ، ہوگا ! ہم سے کیا مرلب ٠
تو نے کیوں بیماری دی ہے ، تونے کیوں آزاری دی ؟
تو نے کیوں مجبوری دی ہے ، تو نے کیوں لاچاری دی ؟
تو نے کیوں محکومی دی ہے ، تو نے کیوں سالاری دی ؟
تو نے کیوں مکّاری دی ہے ، تو نے کیوں عیاری دی ؟
تو نے کیوں اعمال بناۓ ، تونے کیوں تقدیر گڑھی ؟
تو نے کیوں آزاد طبع دی ، تو نے کیوں زنجیر گڑھی ؟
زن زر مئے میں لذّت دیکر ، اس میں کیوں تقصیر گڑھی ؟
سُممُم بُکمُم اُمیُن کہکے ، تعنوں کی تقریر گڑھی ؟
،بازآ ے تیری تکڑم سے ، حکمت تو واپس لیلے
،بہت کسی ہیں تیرے باہیں ،چاہت تو واپس لیلے
،کافر منکر مشرق سے، نفرت تو واپس لیلے
دوزخ کو تو آگ لگا دے ، جنّت تو واپس لیلے ٠
No comments:
Post a Comment