2
ह्म्द1
तेरी संगत तो मुश्किल, कि ऐ मौला निभा पाऊँ,
अज़ाबों२ में तेरे ख़ुद को, हमेशा मुब्तिला पाऊँ.
अक़ीदा३ है मगर कितना ख़तरनाकी की हद में है,
कि तुझ पर सर झुका कर ही, सरे अक़दस४ उठा पाऊँ.
तमसख़ुर ५ को बुरा माने, तू संजीदा ६ हुवा वाक़अ७,
तुझे गर भूल ही जाऊं थोड़ा मुस्कुरा पाऊँ.
बड़ा ही मुन्तक़िम८ है तू , चला करता है चालें भी,
कहीं मफ़रूर९ होकर ही अदू १० से सर बचा पाऊँ.
अना११ तेरी रक़ीबाना१२, है क़ायम वाहिदे मुतलक़१३,
बड़ा मुश्किल मुक़ामे किब्रियाई१४ है, अमाँ पाऊँ.
नमाज़ो, हज, ज़कातो, रोज़ा दारी१५, क़र्ज़ हैं तेरे,
हयाते ख़ुश नुमा१६ को, गर सज़ा दूँ तो चुका पाऊँ.
मुझे मंज़ूर हैं दोज़ख़ की सारी कुल्फ़तें१७ 'मुंकिर',
तलाशे हक़१८ में मर जाऊं, तो कोई भी सज़ा पाऊँ.
१-वन्दना २-विपत्ति ३-आस्था ४-पवित्र शीश ५-हस-परिहास ६-गंभीर ७-स्थापित होना
८-प्रति शोध ९-पलायन वादी १०-शत्रु ११आत्म सम्मान १२-दुश्मनी १३- एकेश्वर ४-ईश्वरीय श्रेष्टता
१५-ये चार इस्लाम के मूल-भूत कर्म-कांड हैं १६-सुखी जीवन १७-यातनाएं १८-सत्य की खोज .
حمد
،تری سنگت تو مشکل ہے، کہ اے مولا نبھا پاؤں
عذابوں میں ترے خود کو، ہمیشہ مبتلا پاؤں٠
،عقیدہ ہے مگر کتنی خطرناکی کی حد میں ہے
کہ تجھ پرسرجھکا کر ہی، سرِاقدس اٹھا پاؤں٠
،تمسخر کو برا مانے، تو سنجیدہ ہوا واقع
تجھے گر بھول ہی جاؤں، تو تھوڑا مسکرا پاؤں٠
،بڑا ہی متقیم ہے تو، چلا کرتا ہے چالیں بھی
کہیں مفرور ہوکر ہی، عدو سے سر بچا پاؤں٠
، انا تیری رقیبانہ، ہے قائم واحد متلعق
بڑا مشکل مقام کبریائی ہے، اماں پاؤں٠
،نمازوحج، زکات و روزہ داری، قرض ہیں تیرے
حیات خوش نما کو گر، سزا دوں تو چکا پاؤں٠
،مجھے منظور ہیں دوزخ کی ، ساری کلفتیں منکر
تلاشِ حق میں مر جاؤں، تو کوئی بھی سزا پاؤں٠
No comments:
Post a Comment