Sunday, July 1, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 102 जब से हुवा हूँ बेग़रज़, शिकवा गिला किया नहीं नहीं,


102

जब से हुवा हूँ बेग़रज़, शिकवा गिला किया नहीं नहीं,
कोई यहाँ बुरा नही, कोई यहाँ भला नहीं.

अपने वजूद से मिला तो मिल गई नई सेहर,
माज़ी को दफ़्न कर दिया, यादों का सिलसिला नहीं.

पुख़्ता निज़ाम को लिए, है ये ज़मीं तवाफ़ में,
जीना भी इक उसूल है, दिल का मुआमला नहीं.

बख़्शा करें ज़मीन को, मअनी मेरे नए अमल,
मेरे लिए रिवाजों का, कोई क़ाफ़िला नहीं.

ज़ेहनों के सब रचे मिले, सच ने कहाँ रचा इन्हें,
ढूँढा किए ख़ुदा को हम, कहीं भी वह मिला नहीं.

थोडा सा और चढ़ के आ, हस्ती का यह उरूज है,
कोई भी मंजिलें न हों, कोई भी मरहला नहीं.

***

،جب سے ہوا ہوں بے غرض، شکوہ گلہ کیا نہیں 
کوئی یہاں بھلا نہیں، کوئی یہاں بُرا نہیں٠ 

،اپنے وجود سے ملا، تو مل گئی نئی سحر 
ماضی کو دفن کر دیا، یادوں کا سلسلہ نہیں٠ 

پختہ نظام کو لئے، ہے یہ زمیں طواف میں 
جینا بھی اک اصول ہے، دل کا معاملہ نہیں٠ 

،بخشا کریں زمین کو، معنی نۓ میرے عمل 
میرے لئے اصولوں کا، کوئی بھی قافلہ نہیں٠ 

ذہنوں کے سب رچے ملے، سچ نے کہاں رچا انہیں،٠ 
ڈھونڈھا کئے خدا کو ہم، کوئی ہمیں ملا نہیں٠ 

،تھوڑا سا اور چڑھ کے آ ، ہستی کا یہ عروج ہے 
کوئی بھی منزلیں نہ ہوں، کوئی بھی مرحلہ نہیں٠ 

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