Wednesday, July 11, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 112 कहा इस्म आज़म की तशरीह कर,


112

कहा इस्म आज़म की तशरीह कर,
कहा लाइलः की इबारत है यह. 

कहा हर मुसलमाँ , मुसलमाँ का हो,
कहा कि तअस्सुब कुदूरत है यह. 

कहा यह इबादत भी इक कुफ़्र है,
कहा कि क़बीलों की आदत है यह. 

कहा इश्क़ ए मअरूफ़ में डूब जा,
कहा कोई जिंस ए लताफ़त है यह? 

कहा लज़्ज़तों की हक़ीक़त है क्या,
कहा फ़ाक़ा मस्तों को मोहलत है यह. 

कहा तू नफ़ी में ख़ुशी करके चल,
कहा ऐन इद्दत में शिद्दत है यह. 

कहा पाक ए अर्ज़ी की तहरीक कर,
कहा बिद्अतों की तिजारत है यह. 

कहा फिर नए रब की पहचान कर,
कहा कि सदा ए सदाक़त है यह.

इस रचना के हिंदी भावार्थ करना मुहाल है.  

،کہا اِسم اعظم  کی تشریح کر 
کہا لا الہ کی عبارت ہے یہ۰ 

،کہا ہر مُسلماں مُسلماں کا ہو 
کہا کہ تعصّب قدورت ہے یہ۰ 

،کہایہ عبادت بھی ایک کُفر ہے 
کہا کہ قبیلوں کی عادت ہے یہ۰ 

،کہا عشقِ معروف میں ڈوب جا 
کہا کوئی جنس لطافت ہے یہ ؟

،کہا تو نفی میں خوشی کر کے چل 
کہا عین عدّت میں شدّت ہے یہ۰  

کہا لذّتوں کی حقیقت ہے کیا ؟
کہا فاقہ مستوں کو مہلت ہے یہ۰ 

،کہا پاک ارضی کی تحریک ہو 
کہا بدعتوں کی تجارت ہے یہ۰ 

،کہا پھر نئے حق کا اعلان 
کہا کہ صدا ے صداقت ہے یہ۰ 


११२ ग़ज़लों का सिलसिला ख़त्म हुवा.
अब आगे मेरी नज़्में मुलाहिज़ा हों.


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