Thursday, June 28, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 99 उन की मुट्ठी में कभी, मेरे पर आते नहीं ,


99

उन की मुट्ठी में कभी, मेरे पर आते नहीं,
हम पे पीर ए ख़ुद नुमाँ, के असर आते नहीं.

है तग़य्युर जुर्म तुम, ये सबक़ पढ़ते रहो,
राह में अपने ये, ज़ेरो ज़बर आते नहीं.

है लताफ़त जिंस में, इससे वह बचते हैं क्यूं,
यह ब्रहमचारी हैं क्या? ग़ौर  फ़रमाते नहीं.

आज दीवाना तो बस, इस लिए दीवाना है,
छेड़ने वाले उसे क्यूँ ,नज़र आते नहीं.

मेरे मुजरिम यूँ भुला बैठे हैं, अपने जुर्म को,
सामने आ जाते हैं, अब वह कतराते नहीं.

***

،مجھ پہ پیرِ خود نُما کے اثر آتے نہیں 
اِنکی مٹّھی میں کبھی، میرے پر آتے نہیں٠ 

،ہے تغیّر جرم، تم یہ سبق پڑھتے رہو
راہ میں اپنے، یہ زیر و زبر آتے نہیں٠ 

،ہے لطافت جنس میں، اس سے وہ  بچتے ہیں کیوں 
یہ برھم چاری ہیں کیا، غور فرماتے نہیں٠ 

،آج دیوانہ تو بس، اس لئے دیوانہ ہے
چھیڑنے والے، اسے کیوں نظر آتے نہیں٠ 

،میرے مجرم یوں بُھلا بیٹھے ہیں اپنے جرم کو 
سامنے آ جاتے ہیں، اب وہ کتراتے نہیں٠ 

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