Wednesday, June 6, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 79 तरस न खाओ, मुझे प्यार कि ज़रुरत है



79

तरस न खाओ, मुझे प्यार कि ज़रुरत है,
मुशीर कार नहीं, यार कि ज़रुरत है.

तुम्हारे माथे पे उभरे, हैं सींग के आसार,
तुम्हें तो फ़तह नहीं, हार की ज़रुरत है.

क़लम की निब ने, कुरेदा है ला शऊर तेरा,
जवाब में कहाँ, तलवार की ज़रुरत है.

अदावतों को भुलाना भी, कोई मुश्क़िल है,
दुआ, सलाम, नमस्कार की ज़रुरत है.

शुमार शेरों का होता है, न कि भेड़ों का,
कसीर कौमों, बहुत धार की ज़रुरत है.

तुम्हारे सीनों में आबाद इन किताबों को,
बस एक 'मुंकिर' व् इंकार कि ज़रुरत है.

*मुशीर कार = परामर्श दाता *ला शऊर =अचेतन मन कसीर=बहुसंख्यक 

،ترس نہ کھاؤ مجھے پیار کی ضرورت ہے 
مشیر کار نہیں یار کی ضرورت ہے 
٠ 
،تمہارے ماتھے پہ ابھرے ہیں سینگ کے آثار 
تمہیں تو فتح نہیں ، ہار کی ضرورت ہے 
٠
،قلم کے نب نے کریدا ہے لا شعور ترا 
جواب میں کہاں ، تلوار کی ضرورت ہے 
٠
،عداوتوں کو بھلانا بھی کوئی مشکل ہے 
دعا ، سلام ، نمسکار، کی ضرورت ہے 
٠
،شمار شیر کا ہوتا ہے ، نہ کہ بھیڑوں کا 
کثیر قوم ، بہت دھار کی ضرورت ہے 
٠
تمہارے سینے میں آباد ان کتابوں کو
بس ایک منکر و انکار کی ضرورت ہے ٠٠ 

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